असम गण परिषद का सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान

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असम गण परिषद (एजीपी) ने नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर सोमवार को असम की भाजपा नीत गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस लेने का ऐलान किया और कहा कि उसने प्रस्तावित विधेयक को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार को समझाने की भरसक कोशिश लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से यहां मुलाकात के बाद, एजीपी अध्यक्ष अतुल बोरा ने कहा, ‘‘ हमने केंद्र को समझाने की कोशिश की कि यह विधेयक असम समझौते के खिलाफ है और राष्ट्रीय नागरिक पंजी को अपडेट करने की चल रही प्रक्रिया को निरर्थक बना देगा, लेकिन सिंह ने हमसे स्पष्ट कहा कि इसे कल लोकसभा में पारित कराया जाएगा। इसके बाद, गठबंधन में रहने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।’’

यह विधेयक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने के लिए लाया गया है। एजीपी और कई अन्य पार्टियों तथा संगठनों का दावा है कि इसका संवेदनशील सीमावर्ती राज्य की जनसांख्यिकी पर विपरीत असर पड़ेगा। बहरहाल, एजीपी के समर्थन वापसी से असम की सर्वानंद सोनेवाल नीत सरकार पर तत्काल कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि विधानसभा में भाजपा के 61 सदस्य हैं और उसे बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के 12 विधायकों और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन प्राप्त है।

असम में 126 सदस्यीय विधानसभा में एजीपी के 14 विधायक हैं जिनमें से बोरा समेत तीन मंत्री हैं। उनसे मंत्री पद से इस्तीफा देने के बारे में पूछा गया तो बोरा ने कहा, ‘‘ हम गुवाहाटी पहुंचने के बाद यह करेंगे।’’ इसके बाद, बोरा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘ हमें लगता है कि भाजपा का विधेयक के प्रति जिस तरह का रूख है उससे हमारे साथ धोखा हुआ है, क्योंकि जब हम गठबंधन में आए थे तो हमें यकीन दिलाया गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अवैध प्रवासियों के मुद्दे का हल निकालने के लिए प्रतिबद्ध थे। हमने ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था कि भाजपा असम के लोगों के साथ ऐसा करेगी। हमें भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल होने का पछतावा है।’’ उन्होंने कहा कि जब उन्होंने मुद्दे पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगा तो सोनोवाल ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया, क्योंकि ‘शायद वह हमारा सामना नहीं कर सकते थे।’’

बोरा ने कहा, ‘‘ हमने इस विधेयक को पारित नहीं कराने के लिए केंद्र को मनाने के लिए आज आखिरी कोशिश की। लेकिन सिंह ने हमसे स्पष्ट कहा कि यह लोकसभा में कल (मंगलवार को) पारित कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि सिंह से सिर्फ वोटों के लिए लोगों की भावनाओं को नजरअंदाज नहीं करने का आग्रह किया गया था लेकिन दुर्भाग्य है कि उन्होंने एक नहीं सुनी। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में विधेयक पारित करने का वायदा किया था।

यह विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। इस विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।

एजीपी और असम के अन्य समूह कह रहे हैं कि विधेयक के प्रावधान 1985 में हुए असम समझौते को निरर्थक बना देंगे। समझौता मार्च 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले सभी अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने की बात कहता है, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं। उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।

असम के कृषि मंत्री ने दावा किया कि विधेयक के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं और ऐसा पहली बार है कि मीडिया भी इसके खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए सड़कों पर आ गया है। पूर्वोत्तर के आठ प्रभावशाली छात्र निकायों के अलावा असम के 40 से ज्यादा समूहों ने नागरिकता अधिनियम में संशोधन करने के सरकार के कदम के खिलाफ मंगलवार को बंद बुलाया है। कई समूहों ने असम के साथ-साथ राष्ट्रीय राजधानी में भी प्रदर्शन किया, जहां कुछ लोग संसद भवन के सामने निर्वस्त्र हो गए।

इससे पहले एजीपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने बयान दिया था कि अगर नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 लोकसभा में पारित होता है तो उनकी पार्टी सरकार से समर्थन वापस ले लेगी। एजीपी के तीन मंत्री और एक वरिष्ठ विधायक प्रधानमंत्री से मिलने के लिए दिल्ली आए हुए हैं। प्रधानमंत्री ने उन्हें अभी मिलने का वक्त नहीं दिया है। नेताओं ने राजनाथ सिंह से मुलाकात की है। एजीपी का लोकसभा और राज्यसभा में कोई सदस्य नहीं है। भाजपा की सहयोगी, शिवसेना और जदयू ने भी ऐलान किया है कि वे संसद में विधेयक का विरोध करेंगी।