कब आएगा गणतंत्र

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-सुभाष चंद्र
26 जनवरी को हम देश के लिए अपने प्राण की आहुति देने वाले शहीदों को याद करना नहीं भूलते, लेकिन उनके लिए या उनके नाम पर बनाये गए स्मारक व पार्क कहीं न कहीं हम भूलते जा रहे हैं। अगर जब इस ख़ास इन देश के लिए कुर्बानी देने वाले शहीदों को याद नहीं किया जाता तो अन्य दिन क्या हम उन्हें याद करेंगे? इस बारे में तो सोचने का कोई मतलब ही नहीं बनता। हम बहुत ही तेज़ी से आधुनिकता की तरफ बढ़ते जा रहे, जिसके चलते हमारी सोच और रहन-सहन का तरीका भी बदलता जा रहा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस होड़ में उतनी ही तेजी से हमारे अंदर की देश प्रेम की भावना भी खत्म होती जा रही है। सैकड़ो वर्षों की गुलामी के बाद 26 जनवरी 1950 में भारत में गणतंत्र का पौधा रोपा गया। इस बार हम 71वां गणतंत्र मना रहे है। यह दिन इसलिए विशेष है क्योंकि इसी दिन हमारा संविधान लागू हुआ था, लेकिन क्या हम असल मायने में आज भी अपने संविधान को पूरी तरह से अपना पाए है? उस पर अमल कर पाए है? यह बात सोचने वाली है। अंग्रेजों की सैकड़ों वर्ष की गुलामी और हजारों बलिदान के बाद इस दिन हमने अपने भारत को संवैधानिक रूप से पा लिया था। बस तभी से देशवासी इसे पूरा हर्षोल्लास के साथ मानते हैं। लेकिन अगर देखा जाये तो आज हमारी बदलती मानसिकता के साथ इस दिन के मायने भी बदलते जा रहे हैं।

वर्ष 1950 का 26 जनवरी का दिन। डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हाल में भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ली और इसके बाद राष्‍ट्रपति का काफिला 5 मील की दूरी पर स्थित इर्विन स्‍टेडियम पहुंचा जहां उन्‍होंने राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराया। भारतीय इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण दिन के रूप में इस दिन को भारत के संविधान था में से एक है बल में आया है और भारत वास्तव में एक संप्रभु राज्य बना। इस दिन भारत में एक पूरी तरह से रिपब्लिकन इकाई बन गई|तो यह जो भी सविधान बना इसमे कहा गया आम आदमी को बराबरी का दर्जा उपलब्ध होगा। आज भी लोग कहते मिल जायेंगे उनके साथ कानून का ही खिलवाड़ किया गया। उन्हें न जाने किन किन अपराधों में जिन्हें उन लोगो ने नहीं किया उसकी सजा दी गयी| उनके लिए आज भी गणतंत्र प्रासंगिक ही है। देश में आज जिधर देखो उधर ही कभी राजनीतिक तो कभी प्रशासनिक उत्पीडन का शिकार होना पद रहा है। एक बार आम आदमी को इस गणतंत्र से किसी न्याय की आपेक्षा मखौल उडाता ही मिल रहा है। देश के न जाने कितने भागों में आज भी विकास की रह देखि जा रही है, कही भी यथोचित कागजी विकास के अलावा ज्यादा कुछ भी देखने को नहीं मिल रहा है। इस विकास की धनराशि को नेता और प्रशासन चलने वाले ही मिल बात कर खा रहे है। कोई भी कुछ कर सकने में सक्षम नहीं है। जिसका हक़ मारा जा रहा है वह भी रोज कमाने खाने वाले ही है, भला उनकी कहाँ हिम्मत है किसी का विरोध या कानून की जटिल प्रक्रिया से दो चार हो सके। ऐसे में हम केवल गणतंत्र मना ही सकते है, ज्यादा कुछ कर नहीं सकते।

अगर देखा जाए तो 26 जनवरी का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व है पर वह महत्व भी जैसे किताबों तक ही सीमित रह गया है| अब गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय उत्सव कहना भी एक मजाक सा प्रतीत होने लगा है। इस दिन राजकीय अवकाश तो घोषित है, लेकिन यह अवकाश किस लिए घोषित किया गया है इस बात की जानकारी आज भी आजाद भारत के आजाद नागरिक को पूरी तरह नहीं है। इसे हम सरकार की असफलता ही कहेंगे कि 70 साल बाद भी उसका राष्ट्रीय उत्सव देश के आम आदमी तक नहीं पहुंच पाया है। आम आदमी जब इसके महत्व को ही नहीं समझ पाए तो वह उत्साह कैसे मनाएंगे। यकीनन आज भारत अंग्रेजों से तो आजाद हो गया है लेकिन किसी और मायने में गुलामी की जंजीरों में कैद होता जा रहा है।
गणतंत्र दिवस को यदि संविधान स्थापना समारोह के रूप में मनाया जाए तो फिर भी सही है। परंतु इसे राष्ट्रीय उत्सव कहना उचित नहीं लगता। जो उत्सव देश के आम आदमी को उत्साहित नहीं करता उसे राष्ट्रीय उत्सव कैसे कहें। अब तो ऐसा लगता है कि यह दिन महज एक कागजी तौर पर हमारे सामने छुट्टी का दिन बनकर रह गया है| इस साल की तरह हर साल यह दिन आयेगा और चला जायेगा और हम सिवाए बड़ी-बड़ी बातों के कुछ नहीं कर पाएंगे। आज हम अपनी ही उलझनों में इतने उलझ गए है कि हमारे पास इन सब के लिए समय ही नहीं है।आज भी इस देश में इन्सान भूख से मर रहा है। किसान फसल न होने पर उत्पीडन के चलते मर रहा है, भला इनके लिए कैसा गणतंत्र है। इनकी तो भूंख ही गणतंत्र है और भोजन ही इनकी मुख्य आवश्यकता है। भला एक मजदूर मजदूरी नहीं करेगा तो खायेगा, गणतंत्र दिवस मनायेगा तो भूखो उसका परिवार मर जतेगा। आज भी मनरेगा किसे कांग्रेस अपनी उपलब्धि मानती है उसे कैसे सभी लूट रहे है सभी ने देखा ही है। स्वास्थ्य बीमा योजना को तो ऐसा बिमा कंपनी ने ही छला जिसकी कोई भी बानगी ही नहीं मिलती। यह योजना भी अस्पतालों व बिमा कंपनियों के कर्मचारियों के सीधे लूट का साधन बन गयी और गुणवत्ता सभी मिलकर खा गए। इलाज के नाम पर एक अलग तरीके का ही बर्ताव किया जा रहा है। जब तक समाज या देश के निम्न आय वर्ग के व्यक्ति तक विकास की वास्तविक धन नहीं पहुचेगा तब तक कैसा गणतंत्र। भारत के सरकार जिस पार्टी की है उसी के कारिंदे ही स्वीकार करते है की देश के आखिरी आदमी तक विकास का धन ही नहीं पहुंच रहा है। अर्थात वह आज भी भूखा है और उसके जीवन में कोई भी परिवर्तन नहीं देखने को मिल रहा है। तब समझो यह गणतंत्र आम आदमी के किस लायक है। अब तो दूसरे गणतंत्र की, जिसमे आम आदमी की भागीदारी हो की जरूरत महसूस ही होगी। आम आदमी का गणतंत्र कब आएगा यह तो समय ही बताएगा।