– सही और संतुलित पोषण से बच्चे नहीं होते हैं बौनापन का शिकार
– जन्म से छह माह तक बच्चे के लिए मां का स्तनपान ही सम्पूर्ण आहार,इसके बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार है जरूरी
मुंगेर, 09 मार्च-
गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और शिशु को संतुलित पोषण सुनिश्चित कराना पहले से ही चुनौतीपूर्ण रहा है। कोरोना महामारी के दौर ने इस समस्या को और भी गति दी है। मातृ एवं शिशुओं को कुपोषण के दंश से बचाने के लिए पोषण पर ध्यान देना उतना ही जरूरी है जितना कि सांस लेने के लिए ऑक्सीजन युक्त शुद्ध हवा ।
एनआरसी मुंगेर की फीडिंग डिमांस्ट्रेटर रचना भारती ने बताया कि सही और संतुलित पोषण न मिलने से बच्चे बौनेपन के शिकार हो जाते हैं। इसलिए प्रसव के एक घन्टा के भीतर ही शिशु को स्तनपान कराना चाहिए। इससे बच्चे की रोग- प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। शिशु जन्म के 6 महीने बाद तक बच्चे को सिर्फ और सिर्फ मां का स्तनपान ही कराना चाहिए। इस दौरान ऊपर से पानी भी शिशु को नहीं देना चाहिए ।
छह माह के बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार है जरूरी : उन्होंने बताया कि 6 माह के बाद बच्चों में शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से शुरू हो जाता है। इसलिए 6 माह के बाद सिर्फ स्तनपान से जरूरी पोषक तत्त्व बच्चे को नहीं मिल पाता है। इसलिए छ्ह माह के उपरान्त अर्ध ठोस आहiर जैसे खिचड़ी, गाढ़ा दलिया, पका हुआ केला एवं मूंग का दाल दिन में तीन से चार बार जरूर देना चाहिए। दो साल तक अनुपूरक आहार के साथ माँ का दूध भी पिलाते रहना चाहिए ताकि शिशु का पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास हो पाए। उन्होंने बताया कि उम्र के हिसाब से ऊँचाई में वांछित बढ़ोतरी नहीं होने से शिशु बौनेपन का शिकार हो जाता है। इसे रोकने के लिए शिशु को स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार जरूर देना चाहिए।
एनआरसी मुंगेर के नोडल अधिकारी विकास कुमार ने बताया कि शुरुआत के 1000 दिन नवजात शिशु के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है । जो कि महिला के गर्भधारण करने से हीं प्रारम्भ हो जाते हैं। आरंभिक अवस्था में उचित पोषण नहीं मिलने से बच्चों का शारीरिक एवं बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो सकता है। जिसकी भरपाई बाद में नहीं हो पाती है। शिशु जन्म के बाद पहले वर्ष का पोषण बच्चों के मस्तिष्क और शरीर के स्वस्थ्य विकास और रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शुरुआती के 1000 दिनों में बेहतर पोषण सुनश्चित होने से मोटापा और जटिल रोगों से भी बचा जा सकता है।
उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के दौरान महिला को प्रतिदिन के भोजन के साथ आयरन ,फॉलिक एसिड एवं कैल्सियम की गोली लेना भी जरूरी है। इसके साथ ही एक गर्भवती महिला को अधिक से अधिक आहार सेवन में भी विविधता लानी चहिए। गर्भावस्था में बेहतर पोषण शिशु को भी स्वस्थ्य रखने में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान आयरन और फॉलिक एसिड के सेवन से महिला एनीमिया से सुरक्षित रहती एवं इससे प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव से होने वाली जटिलताओं से भी बचा जा सकता है। वहीँ कैल्सियम का सेवन भी गर्भवती महिलाओं के लिए काफ़ी जरूरी है। इससे गर्भस्थ शिशु के हड्डी का विकास पूर्ण रूप से हो पाता एवं जन्म के बाद हड्डी संबंधित रोगों से शिशु का बचाव भी होता है।