– जन्म के बाद छः माह तक सिर्फ माँ का दें दूध, इसके बाद अल्प ठोस आहार करें शुरू
– मसले हुए फल और सब्जियां निश्चित मात्रा और समय पर दें, पाचन तंत्र होगा मजबूत, विकसित होगा शारीरिक विकास
खगड़िया-
उचित पोषण से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास होगा और बच्चे तंदुरूस्त होंगे। इसलिए, शिशु को जन्म के पश्चात छः माह तक सिर्फ और सिर्फ माँ का ही दूध सेवन कराएं। माँ का दूध बच्चों के लिए अमृत के समान होता और स्वस्थ शरीर निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। माँ के दूध में मौजूद पोषक तत्व जैसे पानी, प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट मिनरल्स, वसा, कैलोरी शिशु को न सिर्फ बीमारियों से बचाते हैं, बल्कि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। साथ ही बच्चे की पाचन क्रिया भी मजबूत होती है। इसलिए, माँ के दूध को शिशु का प्रथम टीका कहा गया है, जो छ: माह तक के बच्चे के लिए बेहद जरूरी है। वहीं, छ: माह के बाद बच्चे के सतत विकास के लिए ऊपरी आहार की जरूरत पड़ती है। लेकिन, इस दौरान यह ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है कि उसे कैसा आहार दें।
– माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार, ठोस आहार देती है मजबूती :
माँ और शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा लगातार जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। बच्चे के लिए माँ के दूध के साथ पोषण से भरे आहार के बारे में लोगों को जानकारी दी जा रही है। घर और परिवार के सदस्यों को बताया जा रहा है कि छ: माह के बाद शिशु को माँ के दूध के अलावा ठोस और ऊपरी आहार देना शुरू कर देना चाहिए। इस दौरान शुरू किया गया बेहतर पोषण आहार शिशु को स्वस्थ, मजबूत और खुशहाल बनाता है। हालाँकि, इस दौरान भोजन की मात्रा कितनी होनी चाहिए और बच्चे को क्या खिलाना है, यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस वक्त मां और अभिभावक को सावधानी से यह फैसला लेना होता है कि उन्हें अपने शिशु के लिए कैसा ठोस खाद्य पदार्थ देना शुरू करना चाहिए, जो उसके पाचन शक्ति और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखें।
– मसली हुई सब्जियां और फल देकर देखें बच्चे की प्रतिक्रिया :
सिविल सर्जन डाॅ अमरनाथ झा ने बताया, छ: माह बाद बच्चे को स्तनपान कराने के साथ धीरे-धीरे तरल ठोस खाद्य पदार्थ देना चाहिए। बच्चे के पाचन में परेशानी न हो और उसे ग्रहण कर लें। इसलिए, उसे धीरे-धीरे मसले हुए फल और सब्जियां देना शुरू करें। बच्चा जैसे-जैसे दिलचस्पी लेना शुरू करे ठोस खाद्य पदार्थ देना शुरू करें। हर सप्ताह में वृद्धि के अनुसार शिशु को रोजाना एक नए प्रकार का आहार देना आरंभ करें। अनाज के बाद जहाँ तक संभव हो बच्चे को मसली हुई सब्जियां और फल देकर देखें कि वह किस तरह की प्रतिक्रिया देता है। यदि बच्चे ने ठोस खाद्य पदार्थों पर अच्छी प्रतिक्रिया दी है, तो सुनिश्चित करें कि बच्चे को विभिन्न प्रकार के ठोस खाद्य पदार्थों (जैसे, मसला हुआ, नर्म या पका हुआ और सादा आहार) का स्वाद मिलता रहे। शिशु की बढ़ती शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए, मसली हुई सब्जियां और फल लगातार दिए जा सकते हैं।
– इन लक्षणों से पता चलेगा कि बच्चा भूखा है या नहीं :
न केवल आहार देना, बल्कि इसका पता लगाना जरूरी भी है कि बच्चा भूखा है या उसका पेट भर गया है। कुछ लक्षणों से हम इसका पता लगा सकते हैं। जैसे, अधिक भूख लगने पर बच्चा रोने लगेगा। वहीं, बच्चे का मुंह को खुला रखना, उंगलियों और मुट्ठी इत्यादि को चूसने से पता चलता है कि बच्चा और अधिक खाना चाहता है या भूखा है। वहीं, जब बच्चा पर्याप्त खा चुका होगा तो वह अपना मुंह बंद कर लेगा या सिर दूसरी ओर घुमा लेगा। साथ ही पेट भरने पर बार-बार भोजन देने पर लेने से इनकार भी करेगा।
– यह है बच्चे की आहार प्रणाली
– बच्चे के छह माह के होने के बाद से उसे हल्का ऊपरी आहार देना शुरू करें।
– शुरू में नरम खिचड़ी, दाल-चावल व हरी सब्जियां जैसे मसला हुआ आहार दें।
– 7 से 8 माह तक के बच्चों को दो कटोरी, 9-11 महीने के बच्चों को तीन कटोरी और 12 से 24 माह तक के बच्चों को 4-5 कटोरी अच्छी तरह से कतरा व मसला हुआ आहार दें।