नई दिल्ली-
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी और दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने आज प्रदेश कार्यालय पर केजरीवाल सरकार द्वारा 1000 इलैक्ट्रिक बसों की खरीद प्रक्रिया के टेंडर में होने वाले भ्रष्टाचार व बिना किसी तैयारी के बसों को खरीदने को लेकर एक संयुक्त प्रेस वार्ता आयोजित की। इस प्रेस वार्ता में दिल्ली प्रदेश मीडिया प्रभारी श्री प्रत्युष कंठ, सह- प्रभारी श्री नीलकांत बख्शी एवं मीडिया प्रमुख श्री अशोक गोयल देवराहा उपस्थित थे।
पत्रकारवार्ता को सम्बोधित करते हुये दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी ने केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाते हुये कहा कि आम आदमी पार्टी ने अपने चार वर्षों के कार्यकाल के बाद 1000 इलैक्ट्रिक बसों की टेंडर प्रक्रिया इसलिये की क्योंकि बीते चार वर्ष केजरीवाल सरकार निजी कम्पनियों के साथ भ्रष्टाचार करने के लिए मिलिभगत करने में लगी रही। निजी बस कम्पनियों ने जब केजरीवाल सरकार की भ्रष्टाचार की शर्तों को मान लिया तो अब केजरीवाल दिल्ली की जनता के सामने बसों के टेंडर प्रक्रिया की बात रख रहे हैं। अरविन्द केजरीवाल चार वर्ष से लगातार केन्द्र सरकार पर झूठे आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा है। इसके विपरीत 1000 इलैक्ट्रिक बसों के टेंडर प्रक्रिया से यह साबित होता है कि केजरीवाल कभी भी दिल्ली के विकास के लिए काम करना नहीं चाहते थे और केवल केन्द्र सरकार पर झूठा आरोप लगाते थे कि उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा है। जिस आम आदमी पार्टी का जन्म भ्रष्टाचार के विरोध में हुआ था, जो भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं की लिस्ट बनाकर उनके खिलाफ कार्यवाही की मांग करती थी। उसी पार्टी के नेता, विधायक और मंत्री भ्रष्टाचार कई बड़े मामलों में दोषी है। भ्रष्टाचार करना और दिल्ली की जनता के टैक्स के पैसों का दुरूपयोग करना आम आदमी पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है।
श्री तिवारी ने कहा कि केजरीवाल ने वाई-फाई, सीसीटीवी, प्रदूषण, स्वच्छ पानी, बसों में मार्शल, सड़कों पर नई बसे, महिला सुरक्षा व अनाधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने को लेकर चुनावों में बड़े-बड़े लोकलुभावन वायदे किये और दिल्ली की जनता को भ्रमित कर प्रचण्ड बहुमत हासिल किया लेकिन एक भी चुनावी वायदा पूरा नहीं किया। केजरीवाल आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति कर दिल्ली की जनता का ध्यान विकास के मुद्दों से हटाकर उन्हें भ्रम में डालने का प्रयास करते रहे हैं। केजरीवाल दिल्ली में आयुष्मान भारत योजना को लागू नहीं किया, दिल्ली में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया, केन्द्र सरकार की हर जनकल्याणकारी योजना से दिल्ली की लोगों को वंचित कर दिल्ली की जनता के साथ धोखा कर रहे है।
श्री विजेन्द्र गुप्ता ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि केजरीवाल सरकार ने बिना किसी तैयारी के 1000 इलैक्ट्रिक बसों उतारने के लिए स्वीकृति दी है। सरकार के पास फिलहाल न तो बस डिपो है और न ही बसों की चार्जिंग के लिए बिजली की व्यवस्था। जिन 6 बस डिपो में बसें लाने की स्वीकृति दी गई है उनमें से पांच तो अभी धरातल पर ही नहीं है। पूर्वी विनोद नगर तथा बुराड़ी संरक्षित वन क्षेत्र में आते हैं। अभी तक तो इन स्थानों पर डिपो बनाने के लिए वन विभाग से कोई अनुमति ही नहीं ली गई है। बमनोली में तो अभी डिपो बनाने के लिए परिवहन विभाग को जमीन भी हस्तांतरित नहीं हुई है, मंुढ़ेला कला में अभी खेती हो रही है तथा सराय काले खां में मारुति ड्राइविंग स्कूल चल रहा है।
उन्होंने कहा कि डिपो बनाने केे अलावा यहां बसों की चार्जिंग के लिए बिजली की व्यवस्था की जानी है जिसके लिए पावर डिपार्टमेंट की मूल रिपोर्ट के अनुसार 24 महीने लगेंगे। मूल रिपोर्ट के अनुसार इलैक्ट्रिक बसों की चार्जिंग के लिए 66 के.वी. कनैक्शन की आवश्यकता होनी चाहिए जिसे स्थापित करने के लिए 18 से 24 महीने का समय लगेगा। जब इस वस्तुस्थिति को पावर डिपार्टमेंट द्वारा कैबिनेट के नोट पर अपनी टिप्पणी में अवगत कराया गया तो सचिव पावर द्वारा मुख्यमंत्री केजरीवाल के राजनैतिक दबाव में इसके लिए खुद जिम्मेदारी लेने की बजाय श्री मुकेश प्रसाद, स्पेशल सचिव, पावर जो कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया तथा उसके बाद विधुत एवं आपूर्ति मन्त्री सतेन्द्र जैन के कहने पर रिपोर्ट में बदलाव करवाकर यह डलवाया गया कि 11 के.वी के कनेक्शन से बस डिपो में काम चलाया जा सकता है जिसकी व्यवस्था 6 महीने में हो सकती है जो वास्तविकता से परे है।
बसों की परिचालन लागत 109.10 रुपये प्रति किलामीटर प्रति बस होगी जिसमें कन्टेªक्टर को 95.18 रुपये प्रति किलोमीटर मिलेंगें और शेष 14 रुपये के करीब कंडक्टर इत्यादि पर खर्च होंगे जबकि सरकार प्रति किलोमीटर मात्र 30.86 रुपये ही प्राप्त करेगी। इस प्रकार दिल्ली सरकार को लगभग 80 रुपये प्रति किलोमीटर इलैक्ट्रिक बस चलाने में घाटा उठाना पड़ेगा जो प्रति वर्ष 60 लाख होगा और 1000 बसों पर प्रतिवर्ष 600 करोड़ और दस वर्षों में 6000 करोड़ का घाटा सरकार को होगा जबकि बसों का मालिकाना हक भी सरकार के पास नहीं है।
श्री गुप्ता ने कहा कि डिम्टस की रिपोर्ट में राजनीतिक नेतृत्व द्वारा बार-बार बदलाव कराया गया। मूल रिपोर्ट में पहले बदलाव कर 75 लाख रुपये प्रति बस के हिसाब से 1000 बसों के लिए 750 करोड़ रुपये सब्सिडी किस्तों में अदा होनी थी। फिर बदलाव करवाया गया कि यह पूरी की पूरी सब्सिडी एक मुश्त अदा की जाएगी। उन्होंने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि डिम्टस की मूल रिपोर्ट में क्या प्रावधान था?
श्री गुप्ता ने कहा कि बस डिपो तथा बसों की चार्जिंग स्टेशन के लिए इंतजाम करने की जिम्मेदारी सरकार ने अपने ऊपर ली है जो कि 6 महीने के भीतर की जानी है। यदि सरकार इसकी व्यवस्था नहीं कर पाती तो बस चलाने वाली कंपनियों का इसमे कोई कसूर नहीं होगा। बस डिपो तथा उसमें पावर सप्लाई की व्यवस्था करना इस समय में नामुमकिन है।
श्री गुप्ता ने कहा की 1000 इलैक्ट्रिक बसों की खरीद के लिए पैसा ई.सी.सी फण्ड से खर्च किया जाएगा जिस पर सर्वाच्च न्यायालय का आदेश अभी नहीं आया है। इसी तरह उपलब्ध बैट्री टेक्नोलाॅजी में उर्जा के अधिक सुधार की सम्भावनाएं काफी हैं तथा 2025 के बाद और अधिक अच्छी टेक्नोलाॅजी के व्यवसायिक उपयोग की सम्भावनाएं प्रबल हैं। क्योंकि दिल्ली सरकार इलैक्ट्रिक बसों के लिए समझौता 2019-29 के लिए लागू करेगी वह आने वाली उच्च टेक्नोलाॅजी का लाभ नहीं उठा पाएगी।
कुल मिलाकर केजरीवाल सरकार द्वारा 1000 इलैक्ट्रिक बसों को सड़कों पर उतारने का फैसला बना किसी ठोस योजना के किया गया है जिसके गम्भीर परिणाम होंगें। आने के बाद ये बसें केवल खड़ी रहेंगी तथा बिना चले ही सरकार को उनकी परिचालन लागत का भुगतान करना पड़ेगा क्योंकि उनके चलाने के लिए व्यवस्था करने में ही 2 से 3 वर्ष का समय लगेगा। यहाँ तक कि इन बसोें के खड़ा करने तक के लिए भी अभी व्यवस्था नहीं हैै। जल्दबाजी में बिना किसी ठोस योजना के लिए गये केजरीवाल सरकार के इस निर्णय में बस निर्माताओं को 750 करोड़ रुपये की सब्सिडी देने में किसी बड़े घपले, भ्रष्टचार तथा जनता को गुमराह करने की साजिश की बू आती है।