मधुमेह से पीड़ित महिलाएं गर्भावस्था के दौरान रहें सावधान 

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-उचित प्रबंधध से सुरक्षित प्रसव संभव, चिकित्सकीय परामर्श का करें पालन
-लापरवाही पर गर्भस्थ शिशु को भी परेशानी का करना पड़ सकता है सामना
बांका, 25 मार्च।
बदलती जीवनशैली और परिवेश में अब मधुमेह की समस्या भी आम हो गई है। वर्तमान दौर में इस परेशानी से किसी भी आयु वर्ग के लोग पीड़ित हो सकते हैं। इसका परिणाम यह है कि मधुमेह रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में लोगों को इससे बचाव के लिए सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है। खासकर मधुमेह से पीड़ित हो चुकी गर्भवती महिलाओं को तो और सतर्क व सावधान रहने की जरूरत है। दरअसल, गर्भावस्था के दौरान ऐसी पीड़ित महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने से सुरक्षित और सामान्य प्रसव संभव है। इसे लेकर सरकार भी हर जरूरी प्रयास कर रही है । स्थानीय स्तर भी समुचित जांच और उचित प्रबंधन की व्यवस्था की गई है। इसलिए मधुमेह से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जांच जरूर करानी चाहिए।
शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ. सुनील कुमार चौधरी ने बताया, गर्भावस्था के दौरान मधुमेह से पीड़ित महिलाओं की समय पर जांच और आवश्यक उपचार जरूरी है। थोड़ी-सी लापरवाही होने पर बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, मधुमेह के प्रति लापरवाही करने से ना केवल गर्भवती महिलाओं को  परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि गर्भस्थ शिशु का विकास भी प्रभावित हो सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की जांच जरूर करानी चाहिए, ताकि समय पर परेशानी का पता चल सके और ससमय ही जरूरी इलाज सुनिश्चित हो सके। जिले के सभी स्वास्थ्य संस्थानों में मधुमेह जांच की मुफ्त सुविधा उपलब्ध है।
समय पर उपचार नहीं हुआ तो होगी परेशानीः यदि समय से उपचार नहीं हो पाता है, तब आगे चलकर प्रसूता एवं गर्भस्थ शिशु में विभिन्न जटिलताएं हो सकती हैं और दोनों टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित हो सकते। इससे गर्भवती महिलाओं में इन्फेक्शन, प्रसव अवधि में बढ़ोतरी, जटिलतापूर्ण प्रसव, सिजेरियन प्रसव, प्रसव के बाद गर्भाशय का सिकुड़ नहीं पाना एवं प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव जैसी तमाम जटिल समस्या उत्पन्न हो सकती है। इससे प्रसूता की जान पर भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। गर्भावस्था जनित मधुमेह से गर्भस्थ शिशु को भी समस्या हो सकती है। इससे गर्भस्थ शिशु की मृत्यु, मृत शिशु का जन्म, बर्थ डिफेक्ट, बर्थ इन्जरी एवं नवजात शिशु में ग्लूकोज की कमी के साथ पहले तीन महीने में अचानक गर्भपात की संभावना 30 से 60 प्रतिशत तक हो सकती है।
इलाज के लिए तीन तरह की है व्यवस्थाः गर्भावस्था में मधुमेह के उपचार के लिए सरकार ने तीन तरह व्यवस्था की हैं। पहला भोजन एवं पोषण संबंधित, दूसरा दवाई द्वारा एवं तीसरा इन्सुलिन इंजेक्शन के द्वारा। गर्भावस्था में मधुमेह से पीड़ित महिला को पोषण संबंधी जानकारी दी जानी जरूरी है, जिससे वह समझ सके कि गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए पोषण युक्त आहार क्या है। उपयुक्त वजन में बढ़ोतरी कितनी होनी चाहिए एवं खून में सामान्य ग्लूकोज स्तर को प्राप्त करने एवं बनाये रखने के लिए कितना और कौन-सा भोजन लेना है। जिन मधुमेह पॉजिटिव महिलाओं का मधुमेह, पोषण संबंधित उपचार से नियंत्रित नहीं होता है, उन्हें दवा दी जाती है। साथ ही जब दवा सेवन के बाद भी मधुमेह अनियंत्रित होता है, तब चिकित्सक द्वारा इंजेक्शन द्वारा इन्सुलिन की डोज दी जाती है।