संतुलित और पौष्टिक आहार को देशव्यापी अभियान बनाएं

36

 

• “पोषण पखवाड़ा” के क्रम में स्वैच्छिक संस्था “पाथ” ने आयोजित किया वेबिनार
• न कम खाएँ न ज्यादा, संतुलित और पौष्टिक आहार खाएँ : डॉ. हिमांशु भूषण
• जलवायु के अनुकूल मिलने वाले स्थानीय चीजें जरूर खाएँ : डॉ. कौशल किशोर

पटना, 24 मार्च

संतुलित और पौष्टिक भोजन केवल शरीर की जरूरत नहीं, सबल राष्ट्र के निर्माण के लिए भी जरूरी है। अपने जलवायु क्षेत्र में उपलब्ध स्थानीय और मोटे अनाज, फल और सब्जियों को कमतर नहीं आंकें। यही आपके लिए पौष्टिक आहार बनेंगे। इस विषय को देशव्यापी अभियान बनाना होगा तथा दैनिक आधार पर लोगों को जागरूक करना होगा। “पोषण पखवाड़ा” के क्रम में यहाँ स्वैच्छिक संस्था “पाथ” द्वारा आयोजित वेबिनार में वक्ताओं ने ये विचार व्यक्त किये। स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व आयुक्त डॉ. हिमांशु भूषण और आई.सी.डी.एस. के निदेशक डॉ. कौशल किशोर इस वेबिनार के मुख्य वक्ता थे। इसमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत पूरे राज्य के 62 स्वयंसेवी सस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व आयुक्त और वर्तमान में नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के सलाहकार डॉ. हिमांशु भूषण ने कहा कि न कम खाएँ न ज्यादा। संतुलित और पौष्टिक आहार थोड़े-थोड़े समय पर खाएँ। स्वस्थ शरीर, संतुलित शारीरिक विकास और शारीरिक अंगों के ठीक से काम करने के लिए ये जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि किसी एक ही खाद्य-पदार्थ में शरीर के लिए जरूरी सभी पौष्टिक तत्व नहीं मिलते हैं, लेकिन अलग-अलग तरह के भोज्य पदार्थों के मिश्रण से ऐसा संभव है। इसलिए मिश्रित आहार लें, जिसमें मोटे अनाज, हरी सब्जियाँ, स्थानीय फल, दूध और दूध उत्पाद, नमक-पानी आदि सभी चीजें हों। ऐसा करने से हम अस्पताल के खर्च और दवाई से काफी समय तक बचे रह सकते हैं।

डॉ. हिमांशु भूषण ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को विशेष रूप से समझाने की जरूरत है। वे संतुलित और पौष्टिक आहार पर केवल पुरुषों का अधिकार मानती हैं। जबकि ये चीजें उनके लिए ज्यादा जरूरी हैं। गर्भवती महिलाओं को इसकी ख़ास दरकार होती है। स्वस्थ गर्भवती ही स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। ऐसी महिलायें तात्कालिक कमियों को रोग ही नहीं मानतीं हैं, जबकि उसी समय सावधान हो जाएँ तो डॉक्टर के पास जाने की नौबत नहीं आयेगी। उन्होंने रोगों का उदाहरण देकर समझाया कि इसे संतुलित और पौष्टिक आहार से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलायें समय से और अधिक भोजन लें। इसी तरह बच्चों को अन्नप्रासन के समय केवल मीठा खिलाने का चलन है। यह गलत है। उसे थोड़ा नमकीन भी दें। बचपन से ही जब बच्चा सभी चीजों का स्वाद समझने लगेगा तो बड़ा होकर किसी भी चीज को खाने में आनाकानी नहीं करेगा।

आई.सी.डी.एस. के निदेशक डॉ. कौशल किशोर ने कहा कि लोगों में और खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी चीजों को कमतर आंकने की प्रवृति है। उन्हें महंगा सेब ही मुफीद लगता है जबकि अपने घर में उपजने वाला केला और अमरुद खराब लगता है। इस भ्रान्ति को हमलोगों को मिलकर दूर करना होगा। उन्होंने जीवन शैली ठीक करने, आचार-व्यवहार जलवायु के अनुकूल बनाने और पोषण संबंधी भ्रांतियों को दूर करने की बात कही। उन्होंने लोगों से मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, रागी का उपयोग बढाने और अपने मुख्य भोजन का हिस्सा बनाने की अपील की।

वेबिनार का संचालन पाथ के कुमार सौरभ ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन संतोष ने किया। पाथ के राज्य प्रमुख अजीत कुमार सिंह ने स्वागत उद्बोधन किया।