किसान का दर्द देश की आत्मा का दर्द- चिरंजीत कुमार शर्मा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भारतीय किसान संगठन

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नईदिल्ली-

भारतीय किसान संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री चिरंजीत कुमार शर्मा से हमारे विशेष संवाददाता ने किसान आंदोलन के ऊपर चर्चा की जिसमें उन्होंने बताया कि देश के किसान जिन्हें अन्नदाताओं कहना भी अपने आप में न्यायोचित होगा की बात सरकार को प्राथमिकता से सुननी चाहिए।
केन्द्र सरकार को अहंकार से बाहर आकर ये सोचना चाहिए की ये सत्य है उन्होंने इस बिल को बनाने में बहुत जल्दी की और आनन-फानन में बिल बनाया जिसमें भारत के किसानों से कोई सलाह मशवरा नहीं किया गया, जिससे बिल बनाने में जो मंशा होनी चाहिए थी वो दिखाईं नहीं देती। जिससे किसान आहत हैं, जिसका परिणाम सामने दिखाई दे रहा है।
आपको जानकारी होनी चाहिए जिस किसान को हर सरकार ने हासिये पर रखा है, कोरोना काल में जब देश की हर व्यवस्था नकारात्मक जा रही थी और रेल से लगाकर सड़क, हवाई और इंडस्ट्री सभी बंद हो गये थे, तब भी किसानों ने खेतों में अपना पसीना बहाया और देश की अर्थव्यवस्था में लगभग 4 प्रतिशत बढ़ाया यानी किसान जिसे सरकार हासिये पर रखती हैं वो देश की चार प्रतिशत अर्थव्यवस्था का योगदान देता है लेकिन इसके बदले में उन्हें क्या मिलता है भूख, गरीबी, पिछडापन और यदि वो अपनी आवाज उठाते हैं तो लाठी, ड़डें और सर्दी में ठंडे पानी की बौछार, आंसू गैस के गोले उसके बाद सरकार किसानों से हर वैधिक जिम्मेदारी निभाने की आशा करतीं हैं, लेकिन क्या सरकार और उसके वरिष्ठ राजनेता तक वह निभाते हैं इसका जवाब है नहीं निभाते।
अपने जवाब में उन्होंने कहा कि सरकार समर्थन मूल्य की बात करतीं हैं लेकिन क्या सरकार ने ये सुनिश्चित किया की इससे नीचे खरीदने पर कोई कानूनी नियम तोड़ा माना जायेगा और उस पर जो उससे कम में खरीदेगा उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी, यदि नहीं तो समर्थन मूल्य सिवाय चुनावी वादों के कुछ नहीं है और यदि हां तो बिहार में मक्का की फ़सल समर्थन मूल्य से कम में क्यों बिकी और यदि ऐसा हुआ तो सरकार ने क्या किया।

उन्होंने कहा कि किसान का दर्द देश की आत्मा का दर्द है। उसे सुनिए और बैठकर उनकी पीड़ा का समाधान कीजिये।
हो सकता है सरकार अपनी सोच में किसान का हित ही कर रही हो लेकिन अगर किसान सशंकित है तो यह सरकार की उस मंशा की हार है, सरकार के बिल की हार है और खुद सरकार की हार है कि उसने जिनके लिए यह बिल बनाया वो बिल उनकी किसी समस्या का समाधान करने में असफल है।

उन्होंने बताया कि किसान संगठन कोई राजनीतिक दल नहीं है और ना ही उनके प्रतिनिधि राजनेता है वो इस देश के वो नागरिक हैं जिन्हें अपनी बात रखने का उतना ही हक है जितना राजनीतिक दलों के राजनेताओं को है। मेरे दोस्तों मैं भारतीय किसान संगठन का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने पर भी अपने आपको असहाय महसूस कर रहा हूं और इस ठिठुरन भरी सर्दी में अपने किसान भाइयों को सड़कों पर देखकर बहुत व्यथित हूँ। मेरा केन्द्र सरकार से आग्रह है कि सरकार तुरंत हमारी पीड़ा समझे और हमारी व्यथा सुनने की पहल करते हुए हमारी समझे और अपनी मंशा हमे समझाए और एक दूसरे की मंशा, विपदा, संकोच समझकर एक ऐसा समाधान करे जिससे लगें हम उसी भारत सरकार से बात कर रहे हैं जिसको अगर किसान अपने वोटों से, अपने श्रम से, अपनी उगाये हुए अन्न से समर्थन नहीं करती तो ना सरकार बन पाती, ना कोरोना काल में भी देश पेट भर भोजन का पाता।
अपने संदेश में उन्होंने कहा कि रात से न्यूज चैनल पर सुन रहा था कि ये किसान नहीं है इनके पीछे कोई देश विरोधी लोग इस सहज आंदोलन का लाभ उठाकर देश को हानि ना पहुँचा सकता है, मेरी सभी किसान भाइयों से ये आग्रह है कि हमें सतर्क रहना है और अपने चारों तरफ देखना है कि कोई भी ऐसा व्यक्ति अगर हमारे बीच हैं तो उसने पकड़कर सुरक्षाबलों को सौंपा जाये ध्यान रखना कोई भी आंदोलन दंगा फसाद करने से अपनी जीत सुनिश्चित नहीं करता है अगर जीतना है और अपने मांगे मनवानी है तो हाथ जोड़कर अहिंसा के साथ डडे खाने है, तभी हमारी जीत सुनिश्चित होगी इसके साथ हमारा सरकार से भी आग्रह है कि ये जिम्मेदारी सभी की है सरकार की भी है कि वो अगर कोई असामाजिक तत्व आपको आंदोलन में शामिल लगता है तो आप शांति के साथ हमारे वरिष्ठ नेताओं से सम्पर्क करें अगर वो किसान नहीं है और असामाजिक गतिविधि कर रहा है तो हमारे सभी वरिष्ठ नेताओं आपका सहयोग करेंगे।