मध्य प्रदेश में लगातार जीतने वाले विधायकों का टिकट काटना क्या महंगा पड़ सकता है भाजपा को

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आइये बात करते है फिर एक बार मध्य प्रदेश के रोचक चुनाव की जिसने दोनों बड़े दलों की साँसे रोकी हुई हैं ,किसको टिकट दें किसको ना दें -पर उलझी हुई हुई है दोनों पार्टी । कई नियम बनाए गये और विलुप्त किए गए ,कहीं कैंडिडेट पार्टी पर भारी है तो कहीं पार्टी भारी है, कहीं उम्र का खटका तो कहीं 2018 में जीते वोटों का अंतर, जीत दोनों पार्टी को चाहिए और उम्मीदवार इस चुनाव में राजनीतिक भविष्य ढूँढ रहा है नया विधायक मंत्री की उम्मीद लगाये बैठा है तो नया उम्मीदवार विधायक बनने की अब नेतृत्व भी क्या करे एक साधे तो दस बिगड़ते हैं और कार्यकर्ता -बहुत भ्रमित कि किससे जुड़े ,किससे दूरी बनायें लेकिन पार्टी की भक्ति का गाना तो ज़रूरी है। इन सबसे महत्वपूर्ण है कि अब बची सीटों पर भाजपा और कांग्रेस अपने उन उम्मीदवारों को उतारे जो गत कई चुनावों से अपनी जीत लगातार बनाये हुए हैं और जीत का अंतर भी 10 – 15 हज़ार से ऊपर है । इन सीटों पर कोई भी नया प्रयोग किसी भी दल के लिये आत्मघाती होगा चाहे कांग्रेस हो या भाजपा क्यूंकि अब तो सिर्फ़ जीतना है उद्देश्य …..?

तो छोड़ने होंगे उम्र आदि सभी रोड ब्रेकर और देना होगा टिकट जीतने वाले को क्योंकि पिछले चुनाव में कुछ सीटों से सरकार बनी और गिरी ।दल बदलने वालों से सरकार ज़रूर बन सकती है वहीँ मध्य प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ ख़ेमे में नाराजगी और असंतुष्टि ने घर बना लिया और जो मेहमान भाजपा में आये वे कोई क्या जादू करेंगे ये तो नहीं पता पर कई पुराने विधायकों की टिकट काटने की आशंकाएं जताई जा रही हैं जिन्होंने पार्टी के सर पर अपनी विधानसभा क्षेत्र में लगातार जीत का सेहरा सजा कर रखा है ।

हर दल एक दूसरे की गलतियों का इन्तजार कर उसके भुनाने की तलाश में लगे हुए हैं और कुछ दल बड़ी पार्टियों का वोट काटने की जुगत लगाए बैठे हैं तो ये देखना भी दिलचस्प रहेगा की किसकी गलतियों की सजा किसे मिलने वाली है और इसका नतीजा ये भी हो सकता है की एक छोटी सी गलती शायद किसी दल को सत्ता से दूर कर सकती है। भाजपा में इसकी कमी साफ़ देखी जा सकती है की अपने पुराने व विश्वसनीय साथियों को दरकिनार कर टिकट बाटने में कई बार समझौता किया जाता रहा है और शायद यही कारण है की मध्य प्रदेश में इस बार टिकट के बटवारे को लेकर चर्चाएं जोरों पर है।