• बीमारी को खत्म तो नहीं किया जा सकता, लेकिन समय रहते बचाव है संभव
• एमडीए अभियान के दौरान ले डीईसी एवं अल्बेंडाजोल दवा की खुराक
• 28 सितम्बर से जिले में चलाया जा रहा है सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) अभियान
लखीसराय, 29 सितम्बर।
रास्ते कैसे भी हों संजीत के कदम 4 साल पहले चलने से थकते ही नहीं थे. मीलों पैदल चलकर मंजिल पर पहुंचने का विश्वास भीतर बना रहता था. अब सबकुछ बदल गया है. आम लोगों की तरह सरपट दौड़ जाना संजीत के लिए अब संभव नहीं है. सिर्फ़ 36 साल की उम्र में ही जिले के मुस्तफापुर गांव के निवासी संजीत हाथीपांव यानी फाइलेरिया से ग्रसित हो चुके हैं. जिस उम्र में लोग कैरियर के भार को संतुलित करते नजर आते हैं, उस उम्र में संजीत पैरों के अतिरिक्त भार को अपने पैरों से ही ढ़ोने पर मजबूर हैं. हाथीपांव यानी फाइलेरिया एक ऐसा गंभीर रोग है जिसका दर्द व्यक्ति को ताउम्र सहना पड़ता है, क्योंकि इसका कोई पूर्ण इलाज नहीं हैं. हालांकि प्राथमिक अवस्था में इसे रोका तो जा सकता है, लेकिन खत्म नहीं किया जा सकता। संजीत को भी यह दर्द अब जीवन भर ढोना पड़ेगा।
संजीत बताते हैं चार-पांच वर्ष पूर्व से अचानक पैर लाल होना शुरू हुआ और फिर उनमें सूजन बढ़ने लगी। जांच कराने पर फाइलेरिया बताया गया। इसके बाद से से वे लगातार परेशान रहने लगे। पैर की परेशानी तो बढ़ ही गई है, इसको लेकर उन्हें अक्सर बुखार भी आ जाता है। हालांकि वह नियमित रूप से दवा ले रहे हैं।
फाइलेरिया पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता:
संजीत बताते हैं वह निजी चिकित्सकों से लेकर सरकारी अस्पतालों तक में इलाज कराने जा चुके हैं, लेकिन हर जगह उन्हें मायूस ही होना पड़ा है। जवाब मिलता है कि फाइलेरिया पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता, लेकिन सावधानी रख कर इसका प्रसार और इससे होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है। आज संजीत को अपनी सामान्य दिनचर्या में भी समस्याएं आती रहती हैं। संजीत कहते हैं कि उन्हें चिकित्सकों से यह जानकारी मिली कि कुष्ठ रोग के कारण खराब हुए अंगों को तो रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के जरिए दोबारा सही किया जा सकता है, लेकिन हाथीपांव की समस्या नहीं सुलझाई जा सकती।
सामान्य चल रही थी दिनचर्या, आज होती है परेशानी:
संजीत बताते हैं कि एक वक्त ऐसा था जब वह सामान्य व्यक्तियों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे। लोगों से मिलने के साथ रोजमर्रा के कामों को अंजाम देते थे। लेकिन जब से यह परेशानी हुई है, वह सामान्य होते हुए भी सामान्य नहीं हैं। वह महसूस करते हैं कि अगर उन्होंने एहतियात बरती होती एवं फाइलेरिया की दवा ली होती तो शायद आज वह पूर्ण रूप से स्वस्थ होते। वह कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति उनके जैसी परेशानी से बचना चाहता है और अगर एमडीए के तहत वितरित की जाने वाली दवा लेने से यदि चूक गया है तो अभी समय है, वह किसी भी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर फाइलेरिया की दवा ले सकते है। इसे हल्के में न लें यह ऐसी बीमारी है जो शारीरिक पीड़ा के साथ मानसिक तनाव भी देती है।
दवा सेवन से व्यक्ति बीमारी से प्रतिरक्षित हो सकता है:
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी, डॉ. धीरेन्द्र कुमार ने बताया अगर दो साल की उम्र पूरी करने के बाद पांच साल तक लगातार साल में एक बार फाइलेरिया की दवा का सेवन किया जाए तो व्यक्ति इस बीमारी से प्रतिरक्षित हो जाता है। संजीत जैसे मरीजों को फाइलेरिया की समस्या को लेकर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। दवा लेने के साथ कुछ सामान्य व्यवहार में भी बदलाव रखना चाहिए। जैसे बिस्तर को पैर की तरफ छह इंच ऊंचा रखना चाहिए। पैर को रगड़ कर साफ करने से परहेज करना चाहिए। पैरों को बराबर रख कर आरामदेह मुद्रा में बैठना चाहिए। साथ ही पट्टे वाला ढीला चप्पल पहनने के साथ सूजन वाली जगह को हमेशा चोट से बचाना चाहिए।
एमडीए साबित होगा मील का पत्थर:
जिले में 28 सितम्बर से सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत जिले के हरेक घर तक पहुंचकर आशा कार्यकर्ता लोगों को फाइलेरिया से बचाव के लिए डाई इथाइल कार्बामाजिन (डीईसी) एवं अल्बेंडाजोल दवा की खुराक अपने सामने खिला रही हैं। यह कार्यकम 14 दिनों तक चलेगा। इस दौरान दवा देने के साथ लोगों को फाइलेरिया होने के कारण और बचाव के उपाय बताए जाएंगे। फाइलेरिया क्यूलेक्स मच्छर के काटने से फैलता है और यह ठहरे हुए गंदे पानी में ही पनपता है। इसलिए मच्छरों के पनपने को रोककर इससे बचा जा सकता है। जरूरी है कि अपने घर के आसपास सफाई रखें, आसपास जलभराव न होने दें। ऐसे कपड़े पहनें, जिससे पूरा बदन ढका रहे। बारिश के मौसम में बासी खाना न खाएं। बाहर के खाने से परहेज करें और मच्छरदानी का प्रयोग करें।