– जिले के हलसी कृषि विज्ञान केंद्र में कृषि वैज्ञानिक द्वारा दिया जा रहा है प्रशिक्षण
– अपनी क्यारी-अपनी थाली, होगा पोषण वाटिका का मूल मंत्र
लखीसराय-
पोषण माह के तहत सेविकाओं का पोषण वाटिका एवं कृषि पोषण कार्यक्रम का द्वितीय चरण का प्रशिक्षण सोमवार से शुरू हो गया। जो जिले के हलसी कृषि विज्ञान केंद्र में दिया जा रहा है। जिसमें मौजूद सेविकाओं को कृषि वैज्ञानिक द्वारा सीमित संसाधनों के बीच कृषि से जुड़ने का तौर-तरीके बताऐ गये। यह प्रशिक्षण उक्त कृषि विज्ञान के कृषि वैज्ञानिक डॉ. रेणु कुमारी, डॉ. उदय नारायण एवं डॉ. बिनोद कुमार सिंह द्वारा संयुक्तरूप से दिया गया। वहीं, इससे पूर्व प्रथम चरण में जिले के सभी सीडीपीओ व महिला पर्यवेक्षिका को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
अपनी क्यारी, अपनी थाली से बेहतर होगा पोषण
इस अवसर पर आईसीडीएस के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी कुमारी अनुपमा सिन्हा ने कहा कुपोषण, एनीमिया एवं अल्पवजन से समुदाय को बचाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्यों में पोषण अभियान की शुरुआत की गयी है। इसे सफल बनाने के लिए पोषण माह के तहत तमाम गतिविधियाँ का आयोजन कर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। वहीं, उन्होंने ने कहा अपनी क्यारी, अपनी थाली का मुख्य उद्देश्य पोषण वाटिका के सहयोग से गर्भवतियों एवं बच्चों के पोषण में सुधार करना है।
पोषण में बदलाव जरूरी
प्रशिक्षण के दौरान कृषि वैज्ञानिक डॉ. रेणु कुमारी ने कहा कुपोषण मुक्त समाज का निर्माण के लिए पोषण में बदलाव यानि उचित पोषण बेहद जरूरी है। इसके लिए अपनी क्यारी, अपनी थाली मूल मंत्र साबित होगा। उन्होंने बताया कुपोषण का सामना हर आयु वर्ग के लोगों को करना पड़ता है। इसलिए इससे बचाव के लिए पौष्टिक और संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए।
कृषि से जुड़ेगे सेविका, खुद तैयार कर उगाऐंगे सब्जी
प्रशिक्षण में भाग लेने वाली सेविकाओं को सब्जी किट दिया गया। जिससे अब सेविका शिक्षा के साथ-साथ कृषि से भी जुड़ेगी और दूसरों को जोड़ने का काम करेंगी। दरअसल, सेविका सरकार की हर योजना को लोगों को घर-घर जाकर पहुँचाती हैं। अब खुद अपने केंद्र परिसर में सब्जी उगाऐंगी और दूसरों को भी बताएँगी कि कैसे कम और सीमित संसाधनों में भी खुद से सब्जियाँ उजाकर पोषण पर ध्यान दिया जा सकता है।
अब सेविका खुद से उगाई और बनाई सब्जी बच्चों को खिलाएंगी
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी कुमारी अनुपमा सिन्हा ने बताया पहले सेविका बाजार से सब्जी समेत अन्य खाद्य सामग्री खरीदकर और केंद पर बनाकर (पकाकर) खिलाती थी। किन्तु अब खुद से केंद्र परिसर में सब्जी उगाऐगी और बनाकर बच्चों को खिलाएंगी। जिससे पूर्व में खरीददारी के दौरान होने वाली परेशानी भी अब नहीं होगी और केंद्र पर पढ़ने वालों बच्चों को स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी मिलेगी।