नई दिल्ली-
दो दोस्त जिनकी दोस्ती की मिसाल दुनिया कभी देती थी. इन दोनों में मित्रों में मित्रता सागर से भी गहरी थी. हम बात कर रहे है तामिलनाडु के दो बड़े सियासतदानों की एम करूणानिधी और एमजीआर की. इन दोनों ही शख्सियतों ने अब दुनिया को अलविदा कह दिया है. बात अगर इन दोनों ही लोगों की करे तो कहा जाता है कि दोनो ही दोस्तों ने एकदूसरे की मदद सफलता पाने में की . करूणानिधी ने शब्द और एमजीआर के एक्शन ने एकदूसरे को सफलता के शिखर तक पहुंचाया. जहां करूणानिधी के द्वारा लिखे स्क्रिप्ट ने एमजीआर को स्टार बनाने में मदद की वहीं एमजीआर ने लोगों को डीएमके की विचारधारा की मैसेज लोगों को देते थे जिसने करूणानिधी को राजनीति में पकड़ बनाने में मदद की. करीब 30 साल पहले ये दोनों गहरे मित्र हुआ करते थे.
एम करूणानिधी और एमजीआर में मित्रता काफी गहरी थी और दोनो ही दोस्त अकसर अपने अपने क्षेत्रों के अनुभव एकदूसरे के साथ शेयर किया करते थे. इस बात को लोग कभी भुला नहीं पाएंगे जब 1950 में में एम करूणानिधी के द्वारा लिखी स्क्रिप्ट मंतिरी कुमारी से एमजीआर को बड़ी सफलता मिली और करूणानिधी को अपनी योग्यता से नाम और व्यावसायिक सफलता हासिल हुई। करूणानिधि द्वारा लिखे गए स्क्रिप्ट ने एमजीआर को स्टार बना दिया और उनकी गिनती बड़े स्टारों में होने लगी. बात अगर एमजीआर की करें तो एमजीआर उम्र मे करूणानिधि से सात साल बड़े थे लेकिन देखने में बड़े करूणानिधि ही लगते थे. करूणानिधि के विचारों और शब्दों ने एमजीआर को इतना प्रभावित किया की उन्होने कांग्रेस का हाथ छोड़कर डीएमके ज्वाइन कर लिया.
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एमजीआर की मदद से पहली बार सीएम बन करूणानिधि
जब 1969 में तामिलनाडु का सीएब बनने की 18 महीने के बाद ही जब अन्नादुरई का निधन हो गया तब हर किसी को इस बात की उम्मीद थी की अन्नादुरई के निधन के बाद नेदुनचेझियान ही मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन यहां करूणानिधि ने बहुत चतुराई से काम लिया और एमजीआर की मदद से अपना रास्ता बनाते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. इसके बाद करूणानिधि लगतार चुनाव जीतते चले गए. इस बात को करूणानिधि भी मानते थे कि उनके मुख्यमंत्री बनने में एमजीआर का अहम रोल था. इस बात को उन्होने 2010 के विधानसभा चुनाव के दोरान कहा था. करूणानिधी ने एमजीआर के प्रति कृतज्ञता तो व्यक्त की लेकिन उन्हें एक बात की चिंता सताने लगी . वो बात कुछ और नहीं बल्कि एमजीआर के द्वार लोगों को अपने और आकर्षित करने की कला और क्षमता थी.
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जब एमजीआर ने डीएमके से अलग होकर की AIDMK की स्थापना
इस बात को लेकर करूणानिधि ने अपने बेटे एम के मुथू को कालीवुड में लॉन्च कर दिया. इसके बाद उन्होंने एमजीआर को डीएमके से किनारा करने की कोशिश की. इसके बाद हुआ भी कुछ ऐसा भी एमजीआर ने एक साल के बाद डीएमके से अपने आपको अलग कर लिया और अपनी अलग पार्टी के रूप में एआईएडीएमके (AIDMK) की स्थापना की. एमजीआर ने एआईएडीएमके (AIDMK) की स्थापना की जिससे डीएमके में एमजीआर के प्रशंसकों की बड़ी संख्या भी डीएमके से अलग हो गई. इसके बाद एमजीआर तामिलानाडू की सत्ता में आ गए और इसके बाद करूणानिधि को 1987 तक विपक्ष में बैठना पड़ा. एमजीआर और करूणानिधि की दुश्मनी ने निर्देशक मणि रतन्नम को भी प्रभावित किया और उन्होंने साल 1997 में फिल्म “इश्वर” बनाई. बात अगर इसकी करे की करूणानिधि और एमजीआर की दोस्ती में आखिर दरार किस बात को लेकर पड़ी तो इस बारे में लेखक आर.
कानन ने इस बार में लिखा की उस समय केंद्र सरकार यह चाहती थी कि लगातार चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली डीएमके को तोड़ दिया जाए और एमजीआर उनके हाथों का खिलौना बन जाए. करूणानिधि और एमजीआर के बीच मदभेद सार्वजनिक थे लेकिन दोनों ही तामिलनाडु की विधानसभा में दोनों के संबंध आदर्श रहे. इसके अलावा कानन बताते है कि दोनों ही हालाकि अपने अंतिम कार्यकाल में एमजीआर ने डीएमके का विरोध भी किया और कई डीएमके विधायकों को अयोग्य धोषित कर दिया था. एमजीआर से दोस्ती टुटने की बात का पछतावा शायद करूणानिधि को है इस बात को 2009 में ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने कहा था .
ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने दोनों को मिलान की कोशिश भी की थी लेकिन एमजीआर ने कहा की ऐसा कभी नहीं हो सकता है. वहीं 2008 की बात है करूणानिधि ने अपने मित्र एमजीआर को याद करते हुए कहा था कि उनकी प्रबल इच्छा है कि एआईएडीएमके (AIDMK) सहित सभी पार्टियां एक हो जाए. खैर जो भी हो तामिलनाडु के ये दोनों ही शख्सियत अब इस दुनिया में नही है लेकिन लोग अभी भी इन दोनों की दोस्ती को याद करते है।