जाने, कौन हैं पीसी घोष

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देश में लोकपाल की नियुक्ति हो गई है। भ्रष्टाचार पर निगाह रखने वाली सर्वोच्च संस्था लोकपाल का गठन हो गया है। उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश का पहला लोकपाल नियुक्त कर दिया है। जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष के पिता भी जज थे। इनके पिता का नाम जस्टिस शंभु चंद्र घोष है। 1952 में जन्मे जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष ने अपनी कानून की पढ़ाई कोलकात्ता से की है। 1997 में पीसी घोष कोलकात्ता हाईकोर्ट में जज बने। पीसी घोष दिसंबर 2012 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। इस पद पर रहते हुए जस्टिस पीसी घोष ने एआईएडीएमके की पूर्व सचिव शशिकला को भ्रष्टाचार के एक मामले में सजा सुनाई। इसके बाद 8 मार्च 2013 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर उनकी पदोन्नति हुई। जस्टिस पीसी घोष 27 मई 2017 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद से रिटायर हुए। जस्टिस घोष ने अपने उच्चतम न्यायालय के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए। इनके जजमेंट खास तौर पर मानवाधिकार का पक्ष काफी महत्वपूर्ण होता था। उच्चतम न्यायालय के बतौर जज इन्होंने जस्टिस राधाकृष्णन की बेंच में उन्होंने फैसला सुनाया था कि जल्लीकट्टू और बेलगाड़ी दौड़ की प्रथाएं पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का उल्लंघन है। जस्टिस आरएफ नरीमन के साथ उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में शामिल भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और अन्य के खिलाफ आपधारिक साजिश के आरोप तय करने के लिए ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिए थे। कोलकात्ता हाई कोर्ट के सिटिंग जज सीएस कर्न को अवमानना नोटिस जारी किया था। जस्टिस पीसी घोष ने पड़ोसी राज्यों से जल बंटवारा समझौता रद्द करने वाले पंजाब के कानून 2004 को असंवैधानिक ठहराया। उन्होंने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में बिहार के बाहुबली नेता मु. शहाबुद्दीन की जमानत रद्द कर जेल भेजा। चुनाव सुधार पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए। जिसमें सरकारी विज्ञापनों में नेताओं के फोटो छापने पर रोक का आदेश महत्वपूर्ण है। जस्टिस घोष उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत होने के बाद 29 जून 2017 से मानवाधिकार आयोग से जुड़ हुए हैं।