नई दिल्ली। शनिवार की बात है जब पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जनता दल (सेकुलर) के नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी अचानक भावुक हो गए थे. इस दौरान उन्होंने अपने आंसू पोंछते हुए दावा किया कि उन्हें जबर्दस्ती ‘विषकंठ’ बना दिया गया है. यहां उनका इशारा भगवान शिव की तरफ था जिन्हें संसार की रक्षा के लिए विष को अपने गले में धारण करना पड़ा था.
इस कार्यक्रम में कुमारस्वामी का आगे कहना था कि कर्नाटक के भले के लिए उन्हें ‘सत्ता’ का जहर पीने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इससे पहले उनके पिता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा भी दावा कर चुके हैं कि जेडीएसको मुख्यमंत्री पद लेने के लिए मजबूर किया गया था.
चाहे जो भी परिस्थिति हो किसी मुख्यमंत्री का इस तरह की नाटकीय हरकतें करना कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता. इसके बदले अगर कुमारस्वामी शासन-प्रशासन से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दें तो वे अपने राज्य का ज्यादा भला कर सकते हैं. कर्नाटक की राजधानी और दुनिया की दूसरी सिलिकन वैली कहे जाने वाले बैंगलुरु में आज बुनियादी ढांचा पूरी तरह ढहने की कगार पर है. इसके साथ ही यहां बढ़ती आबादी के लिहाज से जरूरी नागरिक सुविधाओं में भारी कमी देखी जा रही है. आज यहां एक बड़े हिस्से की सड़कें जगह-जगह से उखड़ चुकी हैं, तो वहीं कचरा प्रबंधन के मोर्चे पर भी शहर के हालात संभले हुए नहीं लगते. अब बेंगलुरु के घरों में पानी की आपूर्ति भी नियमित रूप से नहीं हो पा रही है. इसके अलावा बिजली कटौती भी यहां की एक बड़ी समस्या है.
राजधानी के अलावा कर्नाटक के एक बड़े हिस्से में इस बार की भारी बारिश और जलभराव चलते बुनियादी ढांचा चरमराता दिख रहा है. चूंकि जेडीएसदक्षिणी कर्नाटक में ही सबसे मजबूत है सो इस सरकार का ध्यान इस इलाके पर ही ज्यादा है जिससे उत्तर, मध्य और तटवर्ती कर्नाटक के लोग खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.
जेडीएस की राज्य विधानसभा में 37 सीटें हैं और इनमें से ज्यादातर दक्षिणी कर्नाटक में पड़ती हैं. लेकिन कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर की कुछ मजबूरियों के चलते उसे यहां सरकार की अगुवाई करने का मौका मिल गया है. हालांकि वह किस्मत से मिले इस मौके को एक अवसर में बदल सकती है और अपने चुनावी वादों को पूरा कर सकती है.
विधानसभा में कांग्रेस के जेडीएस के मुकाबले दोगुने से ज्यादा विधायक हैं. ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि वह बड़े नीतिगत फैसलों पर चाहेगी कि उसकी बात को तवज्जो मिले. वहीं कुमारस्वामी को छोटे-मोटे मतभेदों पर कांग्रेस हाईकमान से दखल की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. इसके बदले उन्हें चाहिए कि वे राज्य के कांग्रेस नेताओं के साथ मिलकर अपनी सरकार का न्यूनतम साझा कार्यक्रम लागू करें.
फिलहाल मुख्यमंत्री को किसानों की कर्जमाफी के अपने फैसले को ढंग से लागू करने की तरफ ध्यान देना चाहिए. इस समय कर्नाटक सरकार छात्र-छात्राओं को फ्री बस-पास उपलब्ध करवाने के साथ-साथ शिक्षा-ऋण माफ करने पर भी विचार कर रही है. आम चुनाव के लिए अब एक साल से भी कम समय बचा है और कुमारस्वामी ऐसे सभी फैसलों का श्रेय लेना चाहेंगे. लेकिन इसके लिए पहली शर्त यही है कि वे नाटकीय हरकतें करना छोड़ें और अपनी गठबंधन सरकार के और दूसरे वादे पूरा करने पर जुट जाएं.