“बासमती पर MEP कमी की आशा, सरकार विचार कर रही है”

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BI News, Indian: केंद्र सरकार बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) की समीक्षा पर गंभीरता से विचार कर रही है। इस समय ये 1,200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन है। दरअसल अधिक मूल्य होने की वजह से देश का निर्यात प्रभावित हुआ है।

चावल की घरेलू आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए उठाए कदम

इस संबंध में उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने रविवार को जारी एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य की समीक्षा पर गंभीरता से विचार कर रही है।

इस समय 1,200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन है दाम

इस समय 1,200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन है। मंत्रालय के मुताबिक सरकार ने चावल की घरेलू आपूर्ति को बढ़ावा देने और कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं।

फ्री ऑन बोर्ड मूल्य की समीक्षा कर रही सरकार

मंत्रालय ने बताया कि केंद्र सरकार बासमती चावल के लिए पंजीकरण-सह-आवंटन प्रमाणपत्र (आरसीएसी) जारी करने के लिए फ्री ऑन बोर्ड (एफओबी) मूल्य की समीक्षा कर रही है। ये कदम चावल निर्यातक संघों से मिले आवेदनों के आधार पर लिया गया है, जिसमें कहा गया है कि उच्च एफओबी मूल्य भारत से बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।

बासमती चावल निर्यातकों के साथ की बैठक

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने कहा कि खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने बासमती चावल निर्यातकों के साथ एक बैठक की। इस बैठक में हुई चर्चा के आधार पर केंद्र सरकार बासमती चावल के निर्यात के लिए एफओबी मूल्य की समीक्षा पर गंभीरता से विचार कर रही है। हालांकि, मंत्रालय ने कहा कि जब तक सरकार उचित निर्णय नहीं ले लेती, तब तक मौजूदा व्यवस्था जारी रहेगी।

चावल का MEP अधिक होने के कारण देश का निर्यात हुआ प्रभावित

उल्लेखनीय है कि बासमती चावल का न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) अधिक होने के कारण देश का निर्यात प्रभावित हुआ है। इस बीच चावल निर्यातक संघ मौजूदा दर को घटाकर लगभग 850 अमेरिकी डॉलर प्रति टन करने की मांग कर रहे हैं। दरअसल सरकार ने अगस्त में बासमती चावल 1,200 डॉलर प्रति टन से कम कीमत पर निर्यात नहीं करने का फैसला किया था। ऐसा बासमती चावल की आड़ में अवैध रूप से गैर-बासमती चावल के ”अवैध” निर्यात को रोकने के लिए किया गया था।

गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर सरकार ने लगाया था प्रतिबंध

ज्ञात हो, इससे पहले केन्द्र सरकार ने इस वर्ष जुलाई माह में उचित दाम पर पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गैर-बासमती सफेद चावल की निर्यात नीति में बदलाव किया था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि घरेलू मूल्यों को नियंत्रित किया जा सके और घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसी के चलते सरकार ने चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए विभिन्न उपाय किए और 20 जुलाई, 2023 से गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।

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निर्धारित किस्मों पर प्रतिबंध के बावजूद लगातार बढ़ता रहा निर्यात

दरअसल, यह देखा गया कि निर्धारित किस्मों पर प्रतिबंध के बावजूद वर्तमान वर्ष के दौरान चावल का निर्यात अधिक रहा है। 17 अगस्त 2023 तक चावल का कुल निर्यात (टूटे हुए चावल को छोड़कर, जिसका निर्यात निषिद्ध है) पिछले वर्ष की इसी अवधि के 6.37 एमएमटी की तुलना में 7.33 एमएमटी रहा। इसमें 15.06 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
वहीं उबले हुए चावल और बासमती चावल के निर्यात में भी तेजी देखी गई है। इन दोनों किस्मों के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था। उबले हुए चावल के निर्यात में 21.18 प्रतिशत (पिछले वर्ष के दौरान 2.72 एमएमटी की तुलना में चालू वर्ष के दौरान 3.29 एमएमटी) बढ़ा है, वहीं बासमती चावल के निर्यात में 9.35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है (पिछले वर्ष के दौरान 1.70 एमएमटी की तुलना में चालू वर्ष के दौरान 1.86 एमएमटी)।

गैर-बासमती सफेद चावल का निर्यात, जिसमें 9 सितंबर, 2022 से 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया गया था और 20 जुलाई, 2023 से निषिद्ध कर दिया गया, में भी 4.36 प्रतिशत (पिछले वर्ष के दौरान 1.89 एमएमटी की तुलना में 1.97 एमएमटी) की वृद्धि दर्ज की गई।

वहीं दूसरी ओर, कृषि और किसान कल्याण विभाग के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, रबी सत्र 2022-23 के दौरान उत्पादन 158.95 एलएमटी रहा, जबकि 2021-22 के रबी सत्र के दौरान यह 184.71 एलएमटी था, और इसमें 13.84 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।