रितेश सिन्हा
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी में आज किसी आधिकारिक पद पर नहीं हैं लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के बाद देश की राजनीति की धुरी बने हुए हैं। भारत का मौजूदा राजनीतिक माहौल ऐसे बनता जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की टक्कर में सिर्फ राहुल गांधी ही संसद से सड़क तक दिख रहे है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद है। कांग्रेस के केंद्रीय मुख्यालय में अब 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर में मंथन का दौर जारी है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में राहुल गांधी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलांगना, राजस्थान, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के नेताओं के साथ बैठकें कर चुके हैं। इन बैठकों में कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, प्रदेश के प्रभारी, प्रदेश के बड़े नेताओं शामिल रहे हैं। महागठबंधन की ढीली पड़ती गांठें और क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने प्रदेशों में दवाब में लेने की रणनीति की वजह से कांग्रेस ने अकेले चुनावी मैदान में उतरने का मन बना लिया हैं। इसकी घोषणा महाराष्ट्र के नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद सामने खुल कर आई जब राहुल गांधी और खड़गे की मीटिंग के बाद प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने अंदर की बात सार्वजनिक करते हुए कहा कि पार्टी सभी 48 सीटों पर लोकसभा चुनाव के लिए तैयार है।
लोकसभा चुनाव मिशन 2024 के लिए प्रियंका गांधी को संगठन से अलग रखा जा रहा है। इसके पीछे उनके नाम से संगठन में हो रही लूटपाट से कांग्रेस को बचाना है। उनके साथ जुड़े संदीप सिंह और उनकी जेएनयू मंडली जिस प्रकार यूपी को राजनीतिक तौर पर बर्बाद कर चुकी है और छत्तीसगढ़ में अपना कारोबार फैलाने में फिराक में थे, उन पर लगाम लग चुकी है। कांग्रेस मुख्यालय के सभी बैठकों में प्रियंका गांधी और उनके चंपू नदारद हैं, लेकिन ये खेमा शांत नहीं है। राहुल के खिलाफ मोर्चाबंदी और प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार बनाने की वकालत करने वालों की कमान एआईसीसी में तारिक अनवर ने संभाली हुई है। वहीं मीडिया में प्रमोद त्यागी उर्फ प्रमोद कृष्णन स्वयंभू आचार्य ने बकायदा मोर्चा खोला हुआ है। कर्नाटक चुनाव में प्रियंका गांधी ने कुछ चुनावी रैलियों को संबोधित किया था। प्रियंका के घर में बैठा ये ग्रुप कर्नाटक की जीत का श्रेय उनकी चुनावी रैलियों को दे रहा है, लेकिन यूपी में पूरी तरह से कांग्रेस को संभालने वाला ये ग्रुप प्रदेश के मामले में बात पलट देता है।
2024 का लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे विपक्षी एकता के नाम पर क्षेत्रीय दल राहुल गांधी से अलग-अलग शर्तों पर नजदीक आने की कोशिशों में जुटे हैं। देश का वोटर पूरे तौर पर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी पर बंटा दिख रहा है। इस रूझान के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए विपक्षी दलों के साथ-साथ प्रियंका गांधी का खेमा बेचैन है। प्रियंका गांधी के नाम पर ये खेमा अच्छी-खासी वसूली का खेल खेलता रहा है, जिस पर लगाम लगने से बेचैनी साफ नजर आने लगी है। अब तक प्रियंका गांधी का झोला ढोने और रायपुर अधिवेशन के दौरान काली सड़कों को गुलाब की पंखुड़ियों से ढक देने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पाला बदल लिया है। अब तक उनके एक ओएसडी रवि तिवारी, प्रियंका के निवास से ही सत्ता चला रहे थे। दिल्ली के बदले रूख को देखते हुए और पार्टी के एक उच्चस्तरीय फैसले के बाद यह तय माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी किसी भी प्रदेश की प्रभारी नहीं बनायी जाएंगी।
भाजपा की एक टीम कांग्रेस के उन असंतुष्ट नेताओं को साधने का प्रयास करती रही है जो मीडिया में राहुल गांधी की मुखालफत कर सकें। ऐसे नेताओं को कांग्रेस में तारिक अनवर और स्वयंभू खलीफा प्रमोद कृष्णन जोड़ने में लगे हैं लेकिन ये गिनती एक-दो के बाद तीन को ढूंढने में अब तक कामयाब नहीं हो सकी है। तारिक भी प्रियंका के लिए समर्थन जुटाने में केरल के अलावा अन्य प्रदेशों का बकायदा दौरा करते रहे हैं। इसी कड़ी में यही खेमा गु्रप 23 के हाथ मिलाते हुए मुमताज पटेल को सक्रिय कर सीडब्लूसी में लाने का दवाब बनाए हुए है। मोदी 2014 में कांग्रेस की कड़ी आलोचना करते हुए प्रधानमंत्री बने। भारत का चुनाव दुनिया में सबसे बड़ा है, रहता है, इसलिए कोई भी राजनीतिक भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है। राजनीतिक विश्लेषक और सर्वेक्षणकर्ताओं के इस बात से सभी आश्चर्यजनक रूप से सहमत हैं कि पीएम मोदी की लोकप्रियता उनके शुरुआती दिनों के मुकाबले कम हुई है। 2023 तक आते-आते केंद्र सरकार की लचर अर्थव्यवस्था, नौकरियां में कमी, देश में अपने चुनावी वायदों पर खरा नहीं उतरना भी लोकसभा चुनावों को खासा प्रभावित कर सकता है।
कंग्रेस अपने संगठन को भी चुस्त-दुरस्त करने में जुटी हैं जिसके परिणाम दिखने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में नया प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री बनाकर प्रदेश के सभी गुटों को एकजुट करने की कवायद की गई है। कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा पिछले प्रभारी पीएल पुनिया, मुख्यमंत्री बघेल व प्रदेश अध्यक्ष मरकाम के रवैये के प्रति मोर्चा खोले हुए था जिसे आलाकमान ने बेहद होशियारी से संभालने की कोशिश की है। प्रदेश अध्यक्ष, उपमुख्यमंत्री और प्रदेश प्रभारी को बदलने का सकारात्मक संदेश प्रदेश की राजनीति में गया। मध्य प्रदेश कांग्रेस में जिला अध्यक्षों के साथ प्रदेश संगठन में भी बदलाव किया गया। वहीं राजस्थान में भी सचिन पायलट के अलावा प्रदेश प्रभारी और नेताओं के साथ हुए मैराथन बैठक के परिणाम भी प्रदेश कमिटी की घोषणा के साथ सबके सामने हैं। तेलांगना में माणिक राव ठाकरे की जगह किसी अन्य नेता को ये जिम्मेदारी दी जाएगी। खड़गे के साथ राजनीतिक साठगांठ से माणिक राव ठाकरे लंबे समय तक महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष बने रहे थे, अब उनकी प्रदेश की राजनीति में वापसी हो सकती है।
मोदी वर्सेज राहुल गांधी की लड़ाई सड़कों पर है। राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता खत्म करने के खिलाफ देश भर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने कांग्रसियों ने पूरे दिन का मौन सत्याग्रह किया। कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को कठघरे में खड़ा किया। देश भर के कांग्रसियों का मानना है कि यह समय एकजुट होने और बताने का है कि न्याय की लड़ाई में राहुल गांधी अकेले नहीं है, बल्कि उनके साथ लाखों कार्यकर्ता और देश के नागरिक खड़े हुए हैं। आने वाले चुनाव में राहुल और मोदी के बीच राजनीतिक लड़ाई तेज होगी और देश की जनता की चुनावी अदालत में तय होगा कि किसके नेतृत्व में देश आगे बढ़ेगा। आपको बता दें कि सूरत की एक अदालत ने आपराधिक मानहानि के मामले में राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई गई थी जिसके बाद उन्हें अपनी सांसदी से हाथ धोना पड़ा था। मामला जिला अदालत से हाईकोर्ट होता हुआ अब सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। चुनाव से पूर्व इसमें एक बड़ा चौकाने वाला फैसला आ सकता है जो देश की दशा और दिशा दोनों तय करेगा। इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं।