पर्यावरण बचाने के लिए 55 देशों की यात्रा, पांच साल में 60,000 किमी की पैडलिंग

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वर्तमान के समय में पर्यावरण एक बहुत बड़ा मुद्दा है। इसे जिस रफ्तार से खराब किया जा रहा है उसी रफ्तार से बचाने की भी मुहिम जोरो पर है। क्योंकि यह दुनिया सुरक्षित रहेगी तभी हम भी सुरक्षित रहेंगे। इस बात को डॉ राज ने समझा और लोगों को समझाने की भी ठानी तो यह मुहिम पर्यावरण बचाने की एक बहुत बड़ी मुहिम में शामिल हो गई। पिछले पांच सालों में एक एनवायरमेंट एक्टिविस्ट के रूप में डॉ राज ने पर्यावरण बचाने के लिए साइकिल से की 55 देशों की यात्रा, पांच साल में 60,000 पैडलिंग करके यह साबित किया कि हौसला हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है।

 

शुरुआत, साल 2016 में साइकिल यात्रा से हुई। क्योंकि साईकल से चलने में किसी भी तरह का कोई प्रदूषण नहीं होता है। यह एक परिवहन का ऐसा साधन है जिसे हर आम आदमी अफ़्फोर्ड कर सकता है। साईकल बाबा बताते हैं कि इससे चलने में ना तो आपकी स्पीड बहुत ज्यादा होती है और ना ही बहुत कम। मतलब यह कि आप साईकल से चलते हुए भी संवाद कर सकते हैं जबकि मोटरगाड़ी से चलने में ऐसा नहीं होता और प्रदूषण का खतरा भी गहराता जाता है।

इसी क्रम में पहले डॉ राज ने एक एनवायरमेंट एक्टिविस्ट के तौर पर पर्यावरण का संदेश लेकर अपने देश में घूमे और फिर एक दिन ऐसा आया कि देश से बाहर विदेशी धरती पर इसी पर्यावरण बचाने के संदेश को लेकर निकल गए। कई देशों में जाकर पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाई और पेड़-पौधों के महत्व के बारे में लोगों को समझाया। वह कहते हैं कि प्रतिदिन तेजी से बढ़ते प्रदूषण का हाल ये हैं कि अब तो मानो सांसें भी कम पड़ने लगी हैं। भूकंप, बाढ़, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए विशेषज्ञों ने प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन को जिम्मेदार ठहराया है।

 

इस विषय के जानकारों का मानना है कि अगर हालात में बदलाव नहीं हुआ तो साल 2030 तक इंसान को रहने के लिए पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रह की तलाश करनी पड़ेगी। लेकिन यही स्थिति रही तो वह जगह भी कितने दिनों तक सुरक्षित रहेगी। इसलिए दुनिया के हर एक नागरिक को पर्यावरण को सुरक्षित रखने में योगदान देना चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन करने से बचना चाहिए। जिस रफ़्तार से मौसम बदल रहा है उसे संतुलित नहीं किया गया तो कह दिन दूर नहीं जब इस धरती पर सांस लेना दुर्लभ हो जाएगा। हम सब साईकल बाबा की ही तरह अपने छोटे छोटे प्रयासों से एक बहुत बड़ी मुहिम खड़ी कर सकते हैं।

साइकिल बाबा उर्फ़ डॉक्टर राज की बात करें तो इन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बीएमएस किया और एक एनवायरमेंट एक्टिविस्ट के तौर पर काम करने लगे। यह बचपन से ही पर्यावरण और पेड़-पौधों से काफी लगाव रखते थे। इनके पिता एक बैंककर्मी थे प्रकृति से उन्हें भी काफी लगाव था। यह गुण राज में अपने पिता से आया। पिता को पेड़-पौधों की देखभाल और खेतों की देखरेख करते उन्होंने अपने बचपन से देखा था बस तभी से उनके मन में पर्यावरण के प्रति लगाव पैदा हुआ और फिर धीरे धीरे एक जुनून में परिवर्तित हो गया।

 

पर्यावरण को सुधारने के लिए अब तक वो साइकिल से ही करीब 55 देशों की यात्रा कर चुके हैं। उन्होंने अब तक भारत, सिंगापुर, भूटान, कंबोडिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, लाओस, वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों की यात्राएं की हैं। उन्होंने ये भी बताया कि जिन देशों में साइकिल से जाना संभव नहीं था ऐसी जगहों पर जाने के लिए उन्हें फ्लाइट का सहारा लेना पड़ा।अपनी इस मुहिम को पूरा करने के लिए उन्होंने अब तक साइकिल से करीब 60000 हजार किलोमीटर तक का सफ़र तय कर लिया है।

साइकिल बाबा का अपना एक यूट्यूब चैनल भी है जिसके करीब तकरीबन चार लाख सस्क्राइबर होने वाले हैं।

पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने की इस मुहिम को साइकिल बाबा बड़े ही दिलचस्प तरीके से चला रहे हैं। लोगों को इसकी उपयोगिता बताने के लिए वो स्कूल और कॉलेज में जाकर प्लांटेशन कैंप आयोजित करते हैं जिसमें पेड़-पौधों के महत्व, उनकी देखभाल और उनसे जुड़ी कई अहम जानकारियां दी जाती हैं. इसमें पर्यावरण को बचाने में जुटे कई गैरसरकारी संस्थाएं भी उनकी मदद कर रही हैं। ‘साइकिल बाबा’ का कहना है कि आज में जियो कल की सोचो। अगर पर्यावरण नहीं होगा तो कुछ भी नहीं होगा। हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

जिन तरीके से इंसान प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है उसका कहर प्राकृतिक आपदाओं के रूप में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। उनका कहना है कि हमारी छोटी-छोटी कोशिशों से ही काफी बदलाव आ सकता है। इसके लिए आपको ज्यादा कुछ करने की भी जरूरत नहीं हैं बस थोड़ा सा पुरानी जीवनशैली को आत्मसात करना होगा। आज के समय में हम फल खाने के बाद इसके बीज को कूड़े में डाल देते हैं जबकि पहले हम इसे कटोरी में रखकर अंकुरित कर इसे जमीन में रोप देते थे। फल खाने के बाद बीज फेंकें नहीं बल्कि जमीन में रोप दें।धरती इतनी उपजाऊ तो है ही कि हजार में से 10 तो अंकुरित हो ही जाएंगे जो बड़े होकर पेड़ का रूप लेंगे। इस तरह आप पर्यावरण को बिना मेहनत किए ही फिर से बेहतर बना पाएंगे।