मातृ एवं शिशु मृत्यु की सही रिपोर्टिंग, समीक्षा एवं आवश्यक कदम उठाएँ, इससे मौत में आएगी कमीः सिविल सर्जन

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-सही रिपोर्टिंग एवं समीक्षा से मौत की दर को कम करने में मिलेगी मदद
-मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी को लेकर प्रशिक्षण का आयोजन
भागलपुर, 7 दिसंबर।
जिला स्वास्थ्य समिति की ओर से भीखनपुर स्थित एक होटल में मंगलवार को मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से मातृ एवं शिशु मृत्यु समीक्षा प्रशिक्षण कार्यशाला का आय़ोजन किया गया। प्रशिक्षण में जिले के सभी सरकारी अस्पतालों के प्रभारी और निजी अस्पताल चलाने वाले डॉक्टर सम्मिलित हुए थे। प्रशिक्षण का उद्घाटन सिविल सर्जन डॉ. उमेश कुमार शर्मा, डीपीएम फैजान आलम अशर्फी, प्रशिक्षक यूनिसेफ के डॉ. नलिनी कांत त्रिपाठी और केयर इंडिया के जय किशन ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
प्रशिक्षण को सबोधित करते हुए सिविल सर्जन डॉ. उमेश कुमार शर्मा ने कहा कि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर की रिपोर्टिंग सही तरीके से नहीं हो पाती है, इस वजह से इसमें सुधार उस गति से नहीं हो पा रही है जितनी की अपेक्षा रहती है। जबकि आशा कार्यकर्ता को एक मौत की रिपोर्टिंग के लिए कुल 1200 रुपये का प्रावधान है। सही तरीके से रिपोर्टिंग नहीं हो पाने से इसे लेकर लोगों में जागरूकता की भी कमी है । जागरूकता बढ़ेगी तो मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में अपने आप गिरावट आएगी। इसलिए प्रशिक्षण में मौजूद सभी अस्पताल प्रभारी अपने-अपने क्षेत्र में इसकी रिपोर्टिंग को सही करवाएं। साथ ही प्रशिक्षण में बताई गई बातों को अमल में लाएं इससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी।
इसलिए है रिपोर्टिंग जरूरीः सिविल सर्जन ने बाताया कि रिपोर्टिंग होने से हमें अपनी कमियों के बारे में पता चलता है। इससे आगे हम उन गलतियों को नहीं दोहराते हैं। अलग-अलग मामलों में अलग-अलग कमियां होती हैं, जिसे चिह्नित कर हमलोग उस पर काबू पा सकते हैं। इसलिए अभी से ही रिपोर्टिंग को दुरुस्त करना शुरू कर दें। सिविल सर्जन ने मौके पर मौजूद शहर के निजी चिकित्सकों को भी इसकी रिपोटिंग करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इससे संबंधित ज्यादातर डॉक्टर महिला हैं। आपलोग महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनें और इसकी रिपोर्टिंग कर मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में अपना योगदान दें।
मौत के कारणों पर करना होगा कामः प्रशिक्षक यूनिसेफ के नलिनी कांत त्रिपाठी ने कहा कि कहा कि 20 प्रतिशत मामलों में मातृ मृत्यु गर्भावस्था के दौरान हो जाती है, जबकि पांच प्रतिशत डिलीवरी के दौरान, 50 प्रतिशत डिलीवरी के 24 घंटे के अंदर, 20 प्रतिशत मौत डिलीवरी के सात दिन के अंदर और पांच प्रतिशत डिलीवरी के दूसरे से छठे सप्ताह के दौरान। इसे हमें सुधारना होगा। ये मौत क्यों होती हैं, इसके कारणों को ढूंढना होगा और उस पर काम करना पड़ेगा, ताकि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सके। इसके साथ-साथ शिशु मृत्यु दर पर भी काम करना होगा। उसकी भी कमियों को ढूंढकर उसे दूर करना होगा। राज्य में मातृ मृत्यु के आंकड़े को अगले दो साल से 2 अंक तक करने का लक्ष्य रखा गया है।
रेफर करने में नहीं करें देरीः राज्य स्वास्थ्य समिति के प्रतिनिधियों ने डिलीवरी के दौरान जटिलता बढ़ने पर रेफर करने में देरी नहीं करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि रेफर करने में देरी करने से भी नुकसान होता है।
कार्यशाला के दौरान केयर इंडिया के प्रतिनिधि जय किशन ने शिशु मृत्यु समीक्षा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए इस प्रक्रिया को सुदृढ़ करने पर बल दिया। उन्होंने ने बताया कि शिशु मृत्यु समीक्षा, SDG-2030 के शिशु मृत्यु संबंधी लक्ष्य को हासिल करने का महत्वपूर्ण साधन है। कार्यक्रम में मौजूद निजी चिकित्सकों ने मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने को लेकर काउंसिलिंग की बात कही। मौके पर डॉ. रेखा झा, डॉ. अर्चना झा, डॉ. पूनम मिश्रा, केयर इंडिया के डीटीओ डॉ. राजेश मिश्रा और डॉ. सुपर्णा टाट मौजूद थीं।