राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम 2025- टीबी के लक्षणों के प्रति रहें सावधान 

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– हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से जिला अस्पताल तक उपलब्ध है टीबी की निःशुल्क जांच और उपचार की समुचित व्यवस्था
– सही समय पर सही जांच और समुचित उपचार के बाद पूरी तरह ठीक हो सकते है टीबी के मरीज
–  निक्षय पोषण योजना के तहत टीबी के उपचार के दौरान मरीजों को प्रत्येक महीने मिलती है 500 रुपए की सहायता राशि
मुंगेर, 14 जुलाई-
राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम 2025 की  सफलता के लिए टीबी के लक्षणों के प्रति रहें सावधान । उक्त बात  जिला स्वास्थ्य समिति मुंगेर के जिला कार्यक्रम प्रबंधक  नसीम रजि ने कही। उन्होंने बताया कि टीबी एक संक्रामक बीमारी है जो माइक्रोबैक्टरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु (बैक्टरिया) से होती है। अन्य संक्रामक बीमारी जैसे हैजा, चेचक, प्लेग, इंफ्ल्यून्ज़ा, मलेरिया, एड्स इत्यादि की  तुलना में टीबी से मरने वालों की संख्या सबसे अधिक है। विश्व की  लगभग एक चौथाई आबादी टीबी से संक्रमित है। रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण 90 प्रतिशत से अधिक लोगों में टीबी का कोई लक्षण प्रकट नहीं होता है।  इसलिए इसे लेटेंट टीबी इन्फेक्शन के नाम से जाना जाता है।  वहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण टीबी के जीवाणु स्वांस के माध्यम से फेफड़ों में पहुंचकर 80 से 90 प्रतिशत तक अपनी संख्या बढाकर पल्मोनरी टीबी पैदा करते हैं। इसके साथ ही फेफड़ों के अलावा अन्य किसी भी अंग जैसे लिम्फनोड, पलूरा, रीढ़ की  हड्डी एवं अन्य जोड़, आंत सहित अन्य अंगों में होने वाले टीबी को एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि पल्मोनरी टीबी की  स्थिति में फेफड़ों की टीबी होती है। इसमें दो सप्ताह तक खांसी, बुखार, सीने में दर्द, वजन में कमी, रात में पसीना आना, कमजोरी थकान भूख लगने  के लक्षण देखने को मिलते हैं। टीबी के एक या अधिक या लक्षण  युक्त वयस्कों एवं बच्चों को संभावित टीबी केस (प्रीसमटिव टीबी माना जाता है।
डिस्ट्रिक्ट टीबी/एचआईवी कोऑर्डिनेटर शैलेन्दु कुमार ने बताया कि टीबी की  जांच के कई तरीके हैं ।
– स्पुटम  माइक्रोस्कोपी : इसमें स्पुटम कंटेनर में व्यक्ति (संभावित रोगी ) के दो नमूने संग्रहित किये जाते हैं। पहला जब व्यक्ति लैब में आता है तब एवं अगले दिन सुबह का सैम्पल । दोनों सैम्पल की  जांच करके रिपोर्ट उसी दिन या अगले दिन मिल जाती है।
– एक्स रे : नेगेटिव स्पुटम रोगियों एवं बच्चों की एक्स रे के द्वारा जांच की जाती है।
– सिबिनेट/ ट्रूनेट – इन आधुनिक मशीनों के द्वारा मात्र दो घन्टे में टीबी का पता चल जाता है। इसके अलावा रिफम्प्सिन रेजिस्टेंस का भी पता चल जाता है।
– लाइन प्रोब ऐसे ( एलपीए) : फाल्कन ट्यूब में एकत्रित सैम्पल को शीत श्रृंखला के अंदर जांच के लिए एलपीए लैब भेजा जाता है।
– फॉलोअप जांच : टीबी मरीजों को उपचार से मिल रहे लाभ को जानने के लिए मुख्य रूप से दो बार जांच कराना आवश्यक है। पहली जांच उपचार शुरू होने के दो महीने बाद और दूसरी उपचार शुरू होने के छह महीने के बाद ।
 टीबी के उपचार के दौरान मॉनिटरिंग :
शैलेन्दु कुमार ने बताया कि टीबी का उपचार लंबा होता  एवम बिना सपोर्ट के कई रोगी  बीच में ही दवा छोड़ देते हैं है। आधे-अधूरे उपचार से टीबी की  दवाइयां बेअसर हो जाती  और मरीज के  अंदर दवा के प्रति रजिस्टेंस पैदा हो जाता है। राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की  सफलता के लिए नियमित और पूरा इलाज सुनिश्चित कराने के लिए समुदाय के प्रशिक्षित ट्रीटमेंट सपोर्टर के सामने दवा सेवन की प्रकिया है। प्रत्येक रोगी के लिए ट्रीटमेंट कार्ड और पहचान पत्र भरे जाने की  व्यवस्था  । पहचान पत्र रोगी के पास और ट्रीटमेंट कार्ड आशा या अन्य ट्रीटमेंट सपोर्टर के पास होता है।
निक्षय पोषण योजना और डायरेक्ट बेनिफिसरी ट्रांसफर  : टीबी के मरीजों को निक्षय पोषण योजना के लाभ के लिए रोगी के बैंक अकाउंट का पूरा डिटेल निक्षय पोर्टल पर अपलोड करवाना आवश्यक है। पूरे उपचार के दौरान टीबी रोगी को 500 रुपये प्रति माह की  दर से निक्षय पोषण योजना की  राशि सीधे उनके बैंक खाते में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। इसके साथ ही ट्रीटमेंट सपोर्टर को 1000 रुपये प्रति सफल उपचार के बाद (ड्रग सेंसेटिव टीबी एवं एच. मोनों सेंसेटिव टीबी के लिए) सीधे उनके खाते में जमा किये जाते हैं। इसके अलावा ड्रग रेसिटेन्ट टीबी रीजन के लिए 2000 गहन पक्ष के बाद तथा 3000 निरन्तर पक्ष के बाद ट्रीटमेंट सपोर्टर के खाते में जमा किये जाते हैं। इसके अलावा संभावित टीबी रोगी की जांच में टीबी कि पुष्टि होने पर प्रथम सूचक को 500 रुपए का भगतान किया जाता है।
5 वर्ष से कम उम्र के ऐसे बच्चे जो टीबी रोगियों के सम्पर्क में रहते तथा जिनमें टीबी का कोई लक्षण नहीं हो ऐसे बच्चों को टीबी से बचाने के लिए (आइसोनियाजिक, प्रोफाइलेक्ट्रिक थेरेपी) आइसोनियाजिक 10 मिली ग्राम प्रति किलोग्राम वजन के हिसाब से 6 महीने तक खिलाया जाता है।