-रितेश सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
मरहूम कांग्रेसी दिग्गज अहमद पटेल की बेटी मुमताज पटेल इन दिनों सुर्खियों में हैं। जी-23 के नेता मुमताज को लेकर खासे सक्रिय हैं। मुमताज को राहुल-प्रियंका के साथ कांग्रेस कार्यसमिति में सदस्य व राष्ट्रीय महासचिव बनाने का कांग्रेस में खासा दवाब बनाया जा रहा है। पिछले दिनों दिल्ली मुख्यालय में छत्तीसगढ़ के नेताओं की मीटिंग के बाद अहमद ग्रुप जी-23 खासा सक्रिय दिखाई दिया। अहमद पटेल की बेटी मुमताज पटेल की एआईसीसी मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, संगठन सचिव केसी वेणुगोपाल से मीटिंग करवाई गई। छत्तीसगढ़ की प्रभारी महासचिव कुमारी शैलजा, मुकुल वासनिक और एआईसीसी में कर्मचारियों के कर्ताधर्ता यतिंद्र शर्मा पूरा मोर्चा संभाले हुए थे। खड़गे, राहुल और वेणुगोपाल से मिलने के लिए एआईसीसी मुख्यालय में पहुंचकर उन्होंने अपना साफ संदेश देने की कोशिश की।
खड़गे ने एआईसीसी में बतौर अध्यक्ष आठ महीने पूरे कर लिए हैं। इस पूरी अवधि में कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में प्रचंड जीत हासिल की और सरकार का गठन भी हो गया। मगर सीडब्ल्यूसी का अब तक गठन न होने के कारण कांग्रेस में असंतोष दिखाई दे रहा है, जबकि इसके गठन को लेकर अब कोई बाधा नहीं बची है। पार्टी द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुसार खड़गे जिसे चाहें उसे नामांकित करने के लिए अधिकृत हैं। खड़गे को आधिकारिक तौर पर 26 अक्टूबर 2022 को कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया था लेकिन एआईसीसी अधिवेशन फरवरी 2023 के कारण इसको टालने के पर्याप्त कारण थे। राहुल गांधी की अगुवाई में भारत जोड़ो यात्रा अपने पूरे शबाब पर थी। कांग्रेस ने अधिवेशन के लिए संसद के शीतकालीन और बजट सत्र समाप्त होने तक का इंतजार किया। फरवरी में ही कांग्रेस की संचालन समिति ने अपनी बैठक में निर्णय लिया कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को चुनाव की बजाए सीडब्ल्यूसी को नामित करने का अधिकार दे दिया। अब खड़गे अहमद के वफादारों को दरकिनार करने के लिए भारी दवाब में है। यही एक बड़ी वजह सामने उभर कर आई है कि वे अपने पुराने बॉस के चहेतों को अनदेखा कर राहुल के दवाब में वर्किंग कमिटी का गठन कैसे कर पाएं, इस पूरे सियासी खेल में खड़गे बुरी तरह से उलझ चुके हैं।
खड़गे की परेशानी यह है कि कांग्रेसी दिग्गज तारिक अनवर, सलमान खुर्शीद, नासिर अहमद के अलावा कांग्रेस में अल्पसंख्यकों में बड़ा चेहरा बनकर उभरे इमरान प्रतापगढ़ी कांग्रेस वर्किंग कमिटी के लिए प्रबल दावेदार हैं। उनके सामने मुमताज पटेल को लाना और राहुल-प्रियंका के समक्ष खड़ा करना खड़गे के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह उनके राजनीतिक अस्तित्व को लेकर भी बड़ा सवाल है। एक तरफ तो ग्रुप 23 का खेमा राहुल और प्रियंका को चुनाव प्रचार में उलझाए रखना चाहता है, वहीं एआईसीसी में मुमताज पटेल को बैठाकर कांग्रेस में अपनी मजबूत पकड़ भी बनाए रखना चाहता है। 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले मुमताज को इन दोनों स्थापित नेताओं के बीच में खड़ा कर अहमद के रूतबे को बरकरार रखने की कोशिशों में यह पूरा ग्रुप जुटा हुआ है। मुमताज गुजरात के भरूच जिले की राजनीति में खासी सक्रिय हो चुकी हैं, लेकिन चुनाव जीतेंगी इसमें उनको खुद संदेह है। गुजरात विधानसभा चुनाव की पूरी तैयारी करने के बाद उन्होंने हार के डर से पैर पीछे खींच लिए थे। कर्नाटक में सरकार बनने के बाद बदले माहौल में एक बार फिर से लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपनी राजनीतिक विरासत के नाम लेकर अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाना चाहती हैं। उनके पिता दिवंगत अहमद पटेल भरूच से लोकसभा चुनाव का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। राजपूत बाहुल्य ये सीट 1952 से कांग्रेस का परंपरागत सीट रही है।
संजय गांधी के जमाने में उनके खासमखास अकबर अहमद डंपी और रजिया सुल्ताना की पहल पर अहमद पटेल को 1977 में गुजरात के भरूच और बिहार के कटिहार लोकसभा सीट से तारिक अनवर को चुनाव लड़ने को कहा गया था। अहमद हवा में चुनाव जीतते रहे। 1977, 1980 और 1985 में कांग्रेस की लहर में उनको जीत हासिल हुई। 1989 के उपरांत लाख कोशिशों के बाद भी अहमद पटेल अपनी परंपरागत सीट जीतने में असफल रहे और मृत्युपर्यंत कांग्रेस पार्टी से राज्यसभा सदस्य बने रहे। अहमद को कांग्रेसियों की निबटाने की राजनीति की वजह से भरूच भाजपा का गढ़ बन गया। 1998 से भाजपा के मनसुखभाई वसावा यहां से जीतते आ रहे हैं। मगर अहमद के करीबी नेता मुमताज पटेल को भरूच से चुनाव लड़ने का मशविरा दे रहे हैं। मुमताज इसी कड़ी में एनएच 48 पर फ्लाईओवर की मांग को लेकर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात कर चुकी हैं। यह पहली बार था जब वह राजनीतिक तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार के किसी मंत्री से मिली थीं।
यूं तो पुत्र फैसल पटेल भी राजनीति में आना चाहते थे, मगर राहुल गांधी के खिलाफ खड़ी आम आदमी पार्टी के घर पर हाजिरी देने लगे। वहीं मुमताज पटेल कांग्रेस पार्टी की रायपुर अधिवेशन में शामिल हुईं, बिना किसी पद के पार्टी के बड़े दिग्गजों के साथ एक सत्र के लिए मंच भी साझा किया। उनके सियासी रसूख के आगे खड़गे भी नतमस्तक होकर खड़े हैं। रायपुर अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अंतर्गत खड़गे मुमताज को कांग्रेस वर्किंग कमिटी फिट करना चाहते हैं जिन्होंने कहा था कि 50 प्रतिशत में महिला, युवा और अल्पसंख्यक तीनों कैटगरी में फिट बैठती हैं। खड़गे मुमताज को गुजरात की राजनीति में कोई असुविधा न हो, इसके लिए उन्होंने अहमद पटेल के करीबी और राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल को पहले ही गुजरात पीसीसी अध्यक्ष बना चुके हैं। वे गु्रप 23 के सभी सदस्यों को कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर एडजस्ट करना चाहते हैं ताकि गांधी परिवार पर दवाब दे सकें। इसमें उनके सहयोगी मुकुल वासनिक, कुमारी शैलजा, मधुसुदन मिस्त्री, आनंद शर्मा, मोहन प्रकाश, मणिक राव ठाकरे और अविनाश पांडे पूरा सहयोग दे रहे हैं। इन सबके कार्डिनेटर बने एआईसीसी में यतिन्द्र शर्मा अपने पूर्व आका अहमद पटेल की कमान संभाले हुए हैं।
खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाली मुमताज की अब राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ चुकी है। अहमद पटेल के निधन के बाद मुमताज ने उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी बनने से इंकार किया था, तब उनका पूरा परिवार बेटे फैसल पटेल के पीछे खड़ा था, लेकिन वो आरोप लगाने से भी नहीं चुके कि कांग्रेस उन्हें तरजीह नहीं दे रही और केजरीवाल का दामन पकड़ अपना राजनीतिक सफर तय करने की नाकामयाब कोशिश भी की। मुमताज पटेल के कारोबारी पति इरफान सिद्दीकी का घर और ऑफिस पर ईडी के निशाने पर है। गुजरात के फार्मास्युटिकल फर्म और स्टर्लिंग बायोटेक धोखाधड़ी मामले को लेकर इरफान के खिलाफ ये कार्रवाई हुई थी। स्टर्लिंग बायोटेक के प्रमोटरों नितिन संदेसरा, चेतन संदेसरा और दीप्ति संदेसरा पर बैंकों से 14,500 करोड़ रुपए के फ़र्जीवाड़ा का आरोप लगे थे। सीबीआई ने स्टर्लिंग बायोटेक और इसके प्रमोटरों के ख़लिफ़ बैंको से 5,383 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था। खुद को राजनीति में लाने का मकसद पति पर लगे घोटाले और फर्जीवाड़े के आरोप का राजनीतिक लाभ उठाना भी है, वहीं राहुल से मिलने में नाकामयाब और हाशिए पर खड़ा ग्रुप 23 इसे राहुल-प्रियंका की लड़ाई में ढाल बनाकर अपना राजनीतिक कामयाब बनाना चाहता है। यही वजह है कि खड़गे की आड़ में यह समूह खुद को एआईसीसी में महत्वपूर्ण पदों पर काबिज बनाए रखना चाहता है। देखना है कि इस दिलचस्प सियासी दांव-पेंच में कौन किस पर भारी पड़ता है।