महामारियों से लें सीख, पर्यावरण को बचाने सामूहिक प्रयास पर बल

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प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन सभी जीवों के लिए संकट
महामारियों से लें सीख, पर्यावरण को बचाने सामूहिक प्रयास पर बल
150 से अधिक युवाओं ने पृथ्वी को सुरक्षित बनाने के कार्यक्रम में लिया हिस्सा
पटना/22,अप्रैल:
पृथ्वी दिवस के अवसर पर सहयोगी संस्था के द्वारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान किशोरों, युवाओं, महिलाओं ने धरती को सुरक्षित और संरक्षित बनाये जाने पर अपने विचार और जानकारी साझा की। ​विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों से आये 150 से अधिक प्रतिभागियों ने इस मौके पर अपने विचार  चित्रकारी, स्लोगन, गीत, वीडियो व लेखनी के माध्यम से व्य​क्त किये।
पृथ्वी दिवस के अवसर पर सहयोगी संस्था द्वारा अपने कार्यक्षेत्र में पर्यावरण के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाने के लिए सामूहिक प्रयासों करने और आगे आने का आह्वान किया गया।
पर्यावरण का बचाव मानव कल्याण के लिए जरूरी:
सहयोगी संस्था की निदेशिका रजनी ने बताया कि पर्यावरण सुरक्षा का सीधा सारोकार मानव अस्तित्व की सुरक्षा से जुड़ा है। पृथ्वी हमारी सुरक्षा के लिए प्रत्येक स्तर पर कोशिश में जुटी है। हमारा अस्तित्व पेड़-पौधे, धरती, हवा एवं नदियाँ की मौजदूगी से ही संभव है। इसलिए यह हमारा भी नैतिक दायित्व है कि हम पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सचेत हों। पृथ्वी का मुख्य स्वरूप निर्माण से जुड़ा है। इसलिए पृथ्वी को माँ की उपमा दी गयी है। इस लिहाज से यह भी जरूरी है कि महिलाओं के प्रति संवेदनशील हों एवं उनके अधिकारों की रक्षा के लिए भी आगे आएं।
प्रतिभागियों ने साझा किए अपने विचार:
कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन ने असुंतलन उत्पन्न कर दिया है। जंगलों की निर्बाध कटाई, कंक्रीट जंगलों का निर्माण, प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग पर्यावरण को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहा है। पृथ्वी की जलवायु मनुष्य एवं अन्य जीवों के लिए प्रतिकूल होने लगा है और ग्लोबल वार्मिग का कारण बन रहा है। प्राकृतिक आपदाओं के रूप में हमें इसकी चेतावनी भी मिलती रहती है, लेकिन दूरदर्शिता का अभाव और लोभ धरती को संकट की ओर ले जा रहा है। प्रतिभागियों ने का कि धरती को सुरक्षित-संरक्षित बने रहने के लिए पेड़-पौधे का रोपण एवं संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है। प्लास्टिक एवं खेतों में डाले जाने वाले केमिकल्स के प्रयोग को रोकना भी आवश्यक होगा। इससे हमारी पृथ्वी बची रहेगी और अन्य जीव-जन्तुओं का जीवन भी बचा रहेगा।