एक शूरवीर की शौर्यगाथा है फिल्म “तान्हाजी”

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#तानाजी

बॉलीवुड हमेशा से इतिहास दुषित करने के लिए बदनाम रहा है लेकिन फिर भी बॉलीवुड में अभी भी कुछ एक्टर्स ऐसे बचे हैं, जिनकी फिल्मों में दम है, अजय देवगन का नाम काफी ऊपर आता है, जो एक बार फिर लौट आए हैं एक दमदार कंटेंट वाली ,ओरिजनल और सच्ची घटना पर आधारित ऐतिहासिक फ़िल्म लेकर….जिसका नाम है … आईए जानते हैं, कौन हैं तानाजी! क्या कहानी थी उनकी और क्या वीरता के कीर्तिमान उन्होंने रचे!और यह भी विश्लेषण करें कि क्या अजय देवगन, तानाजी के किरदार को असलियत के साथ पेश कर पाएंगे या नहीं! या फिर पानीपत और पद्मावत की तरह इस फ़िल्म में भी हमारे इतिहास को तोड़ मरोड़ कर तो पेश नहीं किया जाएगा!

#तानाजी मालुसरे……छत्रपति शिवाजी महाराज के अनन्य मित्र, उनकी दाहिनी बाजूं, और सूबेदार(किलेदार) थे।वो तानाजी ही थे, जिनके बाहुबल से मराठा योद्धाओं ने उस समय के सबसे महत्वपूर्ण कोंढ़ाना (सिंहगढ़)किले पर विजय प्राप्त की थी!

तानाजी का जन्म 1600 ईसवी में महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोदोली गांव में हुआ था। इनके पिताजी का नाम सरदार कलोजी तथा माता का नाम पार्वती बाई था। बचपन से ही तलवारबाजी में रुचि के कारण उनकी मित्रता शिवाजी से हो गई, और आगे चलकर उनकी कार्यकुशलता एवं अनुभव को देखते हुए शिवाजी महाराज ने उन्हें अपनी हिंदवी सेना का सेनापति तथा मराठा साम्राज्य का मुख्य सूबेदार नियुक्त कर दिया।
तानाजी, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। जब वह छत्रपति के साथ औरंगजेब से मिलने गए थे, तब औरंगजेब ने छलपूर्वक उन दोनों को कैद कर लिया था, किंतु यह छत्रपति और तानाजी की आपसी सूझ बूझ का ही परिणाम था कि वे दोनों मिठाई की टोकरी में बैठकर कुशलपूर्वक किले से बाहर निकल आए।

एक बार छत्रपति शिवाजी महाराज की माता श्री जीजाबाई, लाल महल से उदास मन से कोंडाना किले की ओर देख रही थीं! छत्रपति ने उनसे इस उद्विग्नता का कारण पूछा तो उन्होंने कहा….”इस किले पर लहराती हरी पताक़ा उन्हें बेचैन कर रही है!”

इसके अगले ही दिन छत्रपति ने अपने दरबार में सबसे पूछा कि कोंडाना पर आक्रमण करने कौन जाएगा, वह तानाजी ही थे, जिन्होने भरे दरबार में ताल ठोककर कहा था कि “मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना!”

यह वो समय था जब तानाजी के पुत्र के विवाह की तैयारियां चल रही थीं किंतु उन्होंने अपने पुत्र के विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य को वरीयता न देकर छत्रपति की इच्छा का सम्मान करते हुए किले पर आक्रमण करना उचित समझा।

कोंडाना किले की बनावट ऐसी थी कि उसपर आक्रमण करने अत्यंत ही दुष्कर कार्य था, परन्तु तानाजी और छत्रपति के लिए माता जीजाबाई की इच्छा सर्वोपरि थी। उस समय किले पर 5000 मुगल सैनिकों का पहरा था और किले की सुरक्षा का जिम्मा उदयभान राठौड़ के हाथों में था, जो एक राजपूत, एक हिन्दू होते हुए भी सत्ता की लोलुपता में मुगलों से जा मिला था। उदयभान के बारे में कहा जाता है कि वह एक जीता जागता दैत्य था और रोजाना बीस सेर चावल तथा दो भेड़ें खा जाना उसके लिए आम बात थी। उदयभान के पांच पुत्र थे, जो उससे भी बड़े दैत्य थे।

कोंडाना किले का सिर्फ एक ही भाग ऐसा था, जहां से मराठा सेना प्रवेश कर सकती थी और वह था किले की ऊंची पहाड़ियों के पश्चिमी भाग।
वह चार फरवरी, सोलह सौर सत्तर की रात थी।तानाजी के साथ उनके भाई, सूर्या जी और शेलार मामा सिर्फ 342 सैनिकों के साथ निकल पड़े।किले तक पहुँचने पर तानाजी और उनके 342 सैनिकों ने पश्चिमी भाग से किले के अंदर दाखिल होने का निश्चय किया।
तानाजी के पास एक घोरपड नामक पालतू सरिसृप था। यह एक ऐसा जीव होता है जो अगर एक बार भी किसी पत्थर पर भी अपने पांव जमा दे, तो कई पुरुषों का भार पड़ने पर भी वह अपनी जगह से टस से मस नहीं होता। तानाजी ने घोरपड में एक मोटी रस्सी बांधी और उसे किले के पश्चिमी बुर्ज पर फेंक दिया और तानाजी और उनके कई साथी चुपचाप किले पर चढ़ गए।और कोंडाना का कल्याण दरवाजा खोलने के बाद उन्होंने आक्रमण कर दिया।

उदयभान के नेतृत्व में 5000 मुगल सैनिकों के साथ, तानाजी के मात्र 342 सैनिकों का भयंकर युद्ध हुआ।तानाजी एक शेर थे और एक की तरह ही लड़े। युद्ध में जब उनकी ढाल टूट गई तब उन्होंने अपने माथे पर बंधे फेटे को खोलकर अपने हाथ पर बांधा और दूसरे हाथ से बिजली सी गति से तलवार चलाते रहे। अन्ततः मराठाओं ने किले को जीत लिया, किंतु तानाजी युद्ध में गम्भीर रूप से घायल हुए और वीरगति को प्राप्त हुए।

उनकी मृत्यु की खबर सुनकर छत्रपति शिवाजी महाराज अत्यंत दुखी हुए और उनके मुख से निकला….”गढ़ आला, पन सिंह गेला….!” अर्थात हमने किला तो जीत लिया, परन्तु अपना सिंह खो दिया। शिवाजी महाराज, अपने मित्र वीर तानाजी के निधन से इतने दुखी हुए कि ग्यारह दिनों तक रोते और विलाप करते रहे।

कोंडाना किले की फतह के बाद छत्रपति ने उसे मुगलों की दासता से मुक्त कराया तथा अपने मित्र तानाजी की स्मृति में उसका नाम बदलकर “सिंहगढ़” कर दिया, क्योंकि शिवाजी राजे, तानाजी को “सिंह” कहकर ही सम्बोधित करते थे। इसके अलावां उन्होंने पुणे नगर के “वाकडेवाडी” का नाम ‘नरबीर तानाजी वाड़ी” रख दिया। उनकी स्मृति में महाराज शिवाजी ने सम्पूर्ण महाराष्ट्र में उनके कई स्मारक बनवाए।

भारत सरकार ने भी तानाजी के सम्मान में सिंहगढ़ किले की तस्वीर के साथ 150 रुपए का डाक टिकट भी जारी किया था।महान क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर जी ने भी तानाजी के जीवन पर “बाजीप्रभु” नामक गीत की रचना की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसपर प्रतिबंध लगा दिया।अन्ततः 24 मई, 1946 को यह प्रतिबंध हटा लिया गया।

तो ऐसे वीर योद्धा तानाजी पर फ़िल्म की दमदार स्टार कास्ट व इस फ़िल्म के डायरेक्टर ओम राउत हैं, जो स्वयं एक मराठा हैं और इसके पहले बतौर डायरेक्टर उन्होंने “लोकमान्य तिलक” जैसी दमदार मराठी फिल्म का निर्देशन किया था तो देखना आवश्यक है और यदि हमने, हम सबने इसे समर्थन देकर, देखकर आगे नहीं बढ़ाया, तो फिर आगे कोई भी भारत के इतिहास पर फ़िल्म बनाने का साहस नहीं कर सकेगा और ना ही आपको…किसी फिल्म में “जय भवानी” और “हर हर महादेव” के नारे सुनाई देंगे!

तो जाइये…और महसूस करिए उस महान योद्धा की वीरगाथा को!
हर हर महादेव!