22 अप्रैल को जिलाभर में मनाया जाएगा राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस

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– सरकारी और निजी विद्यालयों सहित आंगनबाड़ी केंद्रों पर 26 अप्रैल को आयोजित होगा मॉप अप दिवस
– 1 से 19 वर्ष तक सभी  बच्चों और किशोर-किशोरियों को खिलाई जाएगी अल्बेंडाजोल की कृमि नाशक दवा
मुंगेर, 1 अप्रैल। आगामी 22 अप्रैल को मुंगेर सहित राज्य के 31 जिलों में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस और 26 अप्रैल को मॉप अप दिवस मनाया जाएगा। भारत सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार 1 से 19 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों और किशोरों को कृमि से बचाने के लिए आगामी 22 अप्रैल को राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस मनाया जाना है। इस दौरान जिला के सभी सरकारी और निजी विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, मदरसा, संस्कृत विद्यालय सहित तकनीकी संस्थान, पॉलिटेक्नीक और आईटीआई संस्थान के साथ-साथ आगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से 1 से 19 आयु वर्ग के बच्चों और किशोर-किशोरियों को कृमि नाशक दवा अल्बेंडाजोल 400 एमजी का सेवन कराया जाएगा। इस दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का अक्षरशः पालन किया जाएगा।
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राजेश कुमार रौशन ने कहा कि बच्चों में कृमि संक्रमण , व्यक्तिगत अस्वच्छता तथा संक्रमित दूषित मिट्टी  सम्पर्क से होता है। कृमि के संक्रमण से बच्चों के पोषण स्तर एवम हीमोग्लोबिन स्तर पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है। जिससे बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास प्रभावित होता है। उन्होंने बताया कि पीजीआई चंडीगढ़, आरएमआरआई पटना, एनआईई चेन्नई, सहयोगी संस्था एविडेंस एक्शन एवम राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार के द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार बच्चों में कृमि संक्रमण का दर 2011 की तुलना में सन 2019 में 65 प्रतिशत से घटकर 24 प्रतिशत पर आ गया है ।
उन्होंने बताया कि 1 से 2 वर्ष के बच्चों के अल्बेंडाजोल 400 एमजी टैबलेट का आधा चूरकर पानी के साथ खिलाना है वहीं 2 से 3 वर्ष के बच्चों को अल्बेंडाजोल 400 एमजी का एक टैबलेट चूरकर पानी के साथ खिलाना है। इसके साथ ही 3 से 19 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों और किशोरों को एक पूरी टैबलेट चबाकर खिलानी है। इसके बाद ही पानी का सेवन करना है। इस अति महत्वपूर्ण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आशा कार्यकर्त्ता, आंगनबाड़ी सेविका- सहायिका, जीविका दीदियों सहित स्वास्थ्य विभाग के सहयोगी संस्थाएं एवं हितधारी संगठनों से भी अपेक्षित सहयोग लिया जाएगा । इसके साथ ही इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आवश्यक प्रचार- प्रसार भी किया जाएगा।
शारीरिक एवं मानसिक विकास बाधित करते हैं कृमि –
कृमि संक्रमण के प्रभाव एवं संचरण चक्र पर प्रकाश डालते हुए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. राजेश कुमार रौशन ने बताया कि कृमि ऐसे परजीवी हैं जो मनुष्य के आंत में रहते हैं। आंतों में रहकर ये परजीवी जीवित रहने के लिए मानव शरीर के आवश्यक पोषक तत्वों पर ही निर्भर रहते हैं। जिससे मानव शरीर आवश्यक पोषक तत्वों की कमी का शिकार हो जाता जिससे वे कई अन्य प्रकार की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। खासकर बच्चों और किशोर एवं किशोरियों पर कृमि के कई दुष्प्रभाव पड़ते हैं। जैसे- मानसिक और शारीरिक विकास का बाधित होना, कुपोषण का शिकार होने से शरीर के अंगों का विकास अवरूद्ध होना, खून की कमी होना आदि जो आगे चलकर उनकी उत्पादक क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। कृमि का संचरण चक्र संक्रमित बच्चे के खुले में शौच से आरंभ होता है। खुले में शौच करने से कृमि के अंडे मिट्टी में मिल जाते और विकसित होते हैं। अन्य बच्चे जो नंगे पैर चलते हैं या गंदे हाथों से खाना खाते हैं या बिना ढके हुए भोजन का सेवन करते हैं आदि लार्वा के संपर्क में आकर संक्रमित हो जाते हैं। इसके लक्षणों में दस्त, पेट में दर्द, कमजोरी, उल्टी और भूख का न लगना आदि हैं। संक्रमित बच्चों में कृमि की मात्रा जितनी अधिक होगी उनमें उतने ही अधिक लक्षण परिलक्षित होते हैं। हल्के संक्रमण वाले बच्चों व किशोरों में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ते हैं।