– समाज का नजरिया बदलकर कोरोना को मात देने पर बात
– आईसीडीएस के वेबिनार सिरीज में शुक्रवार को सामाजिक व्यवहार में बदलाव पर मंथन
– फ्रंट लाइन पर काम करने वालों को बताया गया कैसे लाएं कोरोना के प्रति लोगों के व्यवहार में परिवर्तन
भागलपुर, 04 सितंबर
सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण माह के दौरान कुपोषण को मात देने के साथ-साथ कोरोना काल में सामाजिक व्यवहार परिवर्तन को लेकर भी बड़ा प्रयास किया जा रहा है। वेबिनार के माध्यम से चल रहे वेबिनार के तीसरे दिन शुक्रवार को समेकित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) ने सामाजिक व्यवहार परिवर्तन पर मंथन किया। नोडल पदाधिकारी पोषण अभियान श्वेता सहाय ने वेबिनार में कोरोना काल में मानसिक तनाव और इससे होने वाले साइड इफेक्ट के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि फील्ड वर्कर समाज में लोगों की सोंच और सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन का प्रयास करें तो बड़ा बदलाव आ सकता है। इसके बाद एक-एक कर एक्सपर्ट ने सामाजिक व्यवहार में बदलाव लाने को लेकर कई उपाए बताए।
आधारहीन और बिना तथ्य वाली जानकारी बढ़ा रही भेदभाव
यूनिसेफ की एक्सपर्ट मोना सिन्हा ने बताया कि कोरोना काल में आधारहीन जानकारियों से मानसिक स्वास्थ्य पर बड़ा असर पड़ रहा है। मनोवैज्ञानिक प्रभाव दिमाग पर पड़ने समाज में नकारात्मकता बढ़ गई है। यह एक बड़ी चुनौती है और इससे निकलने के लिए सामाजिक व्यवहार परिवर्तन लाना बहुत जरुरी है। कोरोना से लड़ाई लड़ने वाले हों या फिर कोरोना को मात देकर अस्पताल से घर आने वाले हों, उनके साथ समाज का व्यवहार अच्छा होना चाहिए। कोरोना काल के छह माह में बहुत सारी गलत भावनाओं का विकास होने का बड़ा कारण आधारहीन तथ्यों पर आसानी से आंख बंदकर विश्वास कर लेना है। इस कारण से भेदभाव के मामले बढ़े हैं।
कोरोना काल में भेदभाव बड़ी चुनौती:
यूनिसेफ के विशेषज्ञ सुधाकर ने कोरोना काल में सबसे बड़ी चुनौती कोरोना संक्रमितों के प्रति भेदभाव को बताया। स्वास्थ्य कर्मियों के साथ अभद्रता के मामलों के साथ सुसाइड के मामलों को भेदभाव से जोड़कर बताया। उनका कहना है कि समाज में लोगों के व्यवहार में ऐसा परिवर्तन हो गया है कि वह सामाजिक भेदभाव का सहारा ले रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा तब होता है जब इंसान गलत जानकारी और अफवाहों के चक्कर में चारो तरफ से मानिसक समस्या से घिर जाता है, तब बचाव में वह भेदभाव को ही अपनी ढाल बना लेता है। हालांकि पहले से अब स्थितियां काफी बेहतर हुई हैं और अब जागरुकता का भी असर दिख रहा है. लेकिन अभी भी सामाजिक व्यवहार में बदलाव की बड़ी जरुरत है। फ्रंट लाइन वर्कर की चुनौतियों के बारे में बताते हुए एक्सपर्ट सुधाकर ने कहा कि अगर हम कुछ बदलाव लाएं तो इससे आसानी से निपटा जा सकता है। उन्होंने सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन के कई मूल मंत्र बताए, जिसके सहारे कोरोना काल में बेहतर काम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गलत सूचनाओं के भंडार को तोड़ने के लिए फील्ड में काम करने वालों को तथ्यों के आधार पर अपनी बात लोगों के बीच रखनी होगी। सुरक्षा को लेकर उन्होंने फ्रंट लाइन वर्करों को कहा जब भी किसी घर जाएं हाथ साफ कर लें, लोगों से बात करने के लिए खुले मैदान को चुने, फोन से बातकर लोगों को पॉजिटिव विचारों की तरफ ले जाएं।
चुनौतियों में आएगा निखार:
यूनिसेफ की डॉ प्रमिला और डॉक्टर कौल ने सामाजिक व्यवहार में बदलाव के साथ सुरक्षा व बचाव पर भी बात की। उन्होंने कहा कि फील्ड में काम करने वाली फ्रंट लाइन वर्करों को सुरक्षा का ख्याल रखते हुए अभियान को सफल बनाना है। उनका कहना है कि उनकी सफाई और काम करने का तरीका देखकर लोगों में भी बदलाव आएगा। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भ्रांतियों के कारण बहुत सारी समस्या आई जिससे फ्रंट लाइन वर्करों को काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब जागरुकता के कारण काफी बदलाव आया है। इस बदलाव से कोरोना को लेकर भी गांव से लेकर शहर तक लोगों में बदलाव देखने को मिल रहे हैं। सरकार और स्वास्थ्य संगठनों द्वारा गाइडलाइन का पालन हो रहा है जिससे अब सामाजिक व्यवहार में भी परिवर्तन दिखने लगा है। कोरोना को मात देने वाले और उनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार नहीं होना चाहिए, ऐसे लोग तो योद्धा हैं जो कोरोना को मात दे चुके हैं। ऐसे लोगों के प्लाज्मा से अन्य कोरोना रोगियों को ठीक किया जा रहा है। कोरोना काल में जागरुकता से ही सामाजिक भेदभाव के मामलों को खत्म किया जा सकता है और इसके लिए हर स्तर पर सरकार प्रयास कर रही है। कोरोना में लोगों से भेदभाव और भारी पड़ता है, इसलिए इससे बचना होगा।
सामाजिक व्यवहार को लेकर आसान होगी चुनौती:
राज्य पोषण विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज कुमार ने कहा कि सामाजिक व्यवहार को अपनाने में चुनौती तो आएंगी, लेकिन इसे जागरुकता से आसान किया जा सकता है। उन्होंने फ्रंट लाइन में काम करने वालों को प्रशिक्षण के दौरान बताया कि अगर लोगों तक सही जानकारी तथ्य के साथ पहुंचे तो कोई चुनौती नहीं है। आसानी से ही हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। लोगों में कोरोना को लेकर जागरुकता लानी होगी जिससे वह इसके बारे में आसानी से समझ जाएं। कोरोना जाति धर्म और मजहब से नहीं फैलता है। यह किसी को भी हो सकता है और इस चुनौती के लिए सभी को तैयार रहना होगा। अगर हम पूरी तरह से जागरुक रहें और जांच कराने में आगे आएं और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें तो आसानी से इस जंग को जीता जा सकता है। इस दौरान सवाल जवाब किया गया। जिसमें सामाजिक व्यवहार और इससे आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई।
वेबिनार के समापन पर नोडल पदाधिकारी पोषण अभियान श्वेता सहाय ने किया उन्होंने वेबिनार सिरीज का महत्व बताते हुए इसमें चौथे दिन शनिवार को भी लोगों से नए विषय के साथ शामिल होने की अपील की है।