दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की जंग

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दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मुद्दा एक बार फिर उभर कर सामने आया है। भारत की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की स्थिति पेचीदा है। यह एक केन्द्र शासित क्षेत्र है लेकिन इसकी अपनी विधानसभा भी है। इसलिए निर्वाचित मुख्यमंत्री इसका शासन चलाता है, जबकि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त उप-राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है। पर विडंबना यह है कि राज्य की 3 प्रमुख शक्तियां केन्द्र सरकार के पास हैं: 1. सुरक्षा (पुलिस), 2. प्रशासनिक अधिकारी (नौकरशाही) और 3. भूमि पर नियंत्रण। इसकी वजह से दिल्ली पुलिस केन्द्रीय गृहमंत्री के प्रति जवाबदेह है न कि राज्य के मुख्यमंत्री के प्रति। कानून व्यवस्था पर अस्पष्ट नियंत्रण होते ऐसे विरोधाभासी प्रावधान का खुलासा करने हेतु दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपनी ही पुलिस के खिलाफ गत वर्ष धरने पर बैठे थे।

इस बार जहां राज्यपाल के यहां धरने पर बैठे अरविंद केजरीवाल, वहीं फिर इस मुद्दे को भुनाने के लिए इंदिरागांधी स्टेडियम में रैली तक कर डाली और अपनी मांग फिर से केंद्र सरकार के समक्ष रखी और कांग्रेस और भाजपा को अपने वादे पूरे करने की तरफ याद दिलाया। केजरीवाल ने इस बार दिल्ली के पूर्ण राज्य के मुद्दे को बड़ी ही संजीदगी से उठाया है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का मुद्दा दशकों से भाजपा भी उठाती रही है। गौरतलब है कि केन्द्र में मोदी की सरकार आने के बाद से इस संबंध में मन बना चुकने के बावजूद भी भाजपा चुनाव पूर्व कोई ऐलान करने से हिचकती रही है। लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी को यह डर है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिये तो दिल्ली राज्य पर से‘विशिष्ट’ नियंत्रण उनके हाथ से निकल जाएगा।

आइए देखते हैं दुनिया के दूसरे हिस्सों में इस संबंध में क्या परम्परा है? अमरीका के वाशिंगटन डी.सी. का उदाहरण प्रासंगिक होगा। दिल्ली की तरह यह भी एक राजधानी नगर है और इसे एक राज्य के तौर पर मान्यता प्राप्त नहीं है। वाशिंगटन संघ सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए इस पर नियंत्रण कांग्रेस (अमरीकी संसद) का है। साथ ही साथ यहां लोकल मेयर तथा नगरपालिका का भी प्रावधान है। राज्य का दर्जा मिलने से डी.सी. को कांग्रेस में प्रतिनिधित्व मिल जाएगा जो अभी उनके पास नहीं है (कम से कम दिल्ली को संसद में 7 सांसदों का प्रतिनिधित्व प्राप्त है)।

200 साल पहले जब अमरीका का संविधान बन कर तैयार हुआ तो उन्होंने एक डिस्ट्रिक्ट (राजधानी) बनाई, जिस पर संघीय व्यवस्था (जो कि अमरीका में बेहद मजबूत है) के अन्तर्गत यदि राष्ट्रीय राजधानी किसी राज्य के अधिकार क्षेत्र में होगी तो राज्य मुश्किलें खड़ी कर सकता है। बड़े अचरज की बात है कि बेहद शक्तिशाली कांग्रेस को वाशिंगटन डी.सी. के स्थानीय मुद्दों पर भी फैसले लेने पड़ते हैं जिसे आसानी से स्थानीय मेयर व प्रशासन के हवाले किया जा सकता है। वाशिंगटन के लोग भी इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की चाह रखते हैं लेकिन वाशिंगटन डी.सी. की पुलिस स्थानीय प्रशासन के प्रति जवाबदेह है। अर्थात् स्थानीय पुलिस मेयर और नगरपालिका के नियंत्रण में है। हालांकि वाशिंगटन का कुछ हिस्सा संघीय सुरक्षा एजैंसियों (उदाहरण यूनाइटेड स्टेट कैपिटोल पुलिस) के अधिकार क्षेत्र में आता है।

1990 में गठबंधन की राजनीति शुरू होने के बाद से भारत में भी संघवाद की व्यवस्था लोक बहस का विषय बनने लगी। इससे पहले केन्द्र सरकार का रवैया बेहद केन्द्रीयकृत होता था और लोग इसे सहजता से लेते थे। देश में सत्ता के केन्द्रीयकरण और संघीय ढांचे को नजरअंदाज करने वालों में इंदिरा गांधी सबसे आगे थीं। 70 के दशक में पूरे देश पर आपातकाल लागू करना, उनकी इस प्रवृत्ति की बेमिसाल उदाहरण है। चुनी हुई राज्य सरकार को मनमाने तरीके से बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करना जैसे केन्द्र की मनमानी के कई उदाहरण भारत में देखने को मिलते हैं। राज्यों द्वारा जिला कलैक्टरों की नियुक्ति भी सत्ता के केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति को ही दिखलाता है। यह सत्ता के विकेन्द्रीयकरण के सिद्धांत के खिलाफ तो है ही, ऐसे प्रावधानों के चलते स्थानीय सरकारों (लोकल गवर्नैंस) के विकास को भी बढ़ावा नहीं मिल पाता।

प्रशासनिक दृष्टिकोण से दिल्ली भी केन्द्र सरकार की अनिश्चितताओं का शिकार रही है। 1951 में इसे राज्य का दर्जा दिया गया और चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। लेकिन 1955 में इसे केन्द्र शासित प्रदेश में तबदील कर दिया गया और विधानसभा भंग कर दी गई। 38 बरस के इंतजार के बाद 1993 में एक बार फिर विधानसभा का गठन हुआ और मदन लाल खुराना भाजपा निर्वाचित मुख्यमंत्री बने।

पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने की चाहत में हालांकि दिल्ली की यात्रा अभी तक अधूरी है।

लेकिन दिल्ली को जरूरत है एक स्वतंत्र रूप से काम करने वाले मुख्यमंत्री की न कि केन्द्रीय सरकार के हाथों की कठपुतली मुख्यमंत्री की। पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से दिल्ली को एक ऐसी विधानसभा मिलेगी जिसके नियंत्रण में पुलिस व कानून और व्यवस्था होगी, उसे नौकरशाही की नियुक्ति और तबादले के निर्णय का अधिकार होगा।

दिल्ली में सच्चा स्वराज तभी आ सकता है जब सत्ता निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास हो। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने में विलंब कर संघवाद के सिद्धांत का गला नहीं घोटना चाहिए। जैसे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली को दुल्हनिया (पूर्ण राज्य का दर्जा) बनाने के वायदे पर कोई असमंजस नहीं दिखाया है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को पूर्ण राज्य की जंग छेड़ी दी है। केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से इस मसले पर अपना पक्ष स्पष्ट करने की अपील करते हुए कहा कि अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलता तो लोक सभा चुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलेगी। केजरीवाल ने आम दिल्लीवालों से सियासी जंग में शामिल होने की अपील करते हुए कहा कि अनिल बैजल दिल्ली के अंतिम उपराज्यपाल होंगे।

केजरीवाल ने सवाल कर रहे हैं कि दिल्ली में किसकी चलेगी, उपराज्यपाल की या दिल्लीवालों की। राशन डिलिवरी स्कीम, मोहल्ला क्लीनिक, सीसीटीवी कैमरा, ठेकेदारी प्रथा खत्म करने जैसी दिल्ली सरकार की दूसरी योजनाओं को गिनाते हुए केजरीवाल ने कहा कि चुनी हुई सरकार दिल्लीवालों के लिये काम करना चाहती है, लेकिन उपराज्यपाल उसे रोक देते हैं।

यहां तक कि इस मसले पर जब वह अपने मंत्रियों के साथ बात करने राजनिवास गये तो वह उनसे मिलने तक नहीं आये। नौ दिनों तक अनिल बैजल ने मिलने का वक्त नहीं दिया। दिल्ली की जनता उन्हें 2019 में इसका जवाब देगी। अरविंद केजरीवाल ने आगे कहा कि उपराज्यपाल ने दिल्ली के 2 करोड़ लोगों का अपमान है।

हर दिन, हर मिनट दिल्लीवालों को बेइज्जत किया जा रहा है। उपराज्यपाल व भाजपा ने दिल्ली के लोगों का मजाक बनाकर रख दिया है। उन्होंने सवाल किया कि लोगों ने वोट किसे दिया था, केजरीवाल को या उपराज्यपाल को? जब दिल्लीवालों ने केजरीवाल को वोट दिया था तो बीच में उपराज्यपाल कहां से आ गए?

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ दिल्ली की नहीं, पूरे देश की है। उन्होंने कहा कि वह सभी दलों से भी अपील करते हैं कि इस हक में आवाज बुलायें। केजरीवाल ने जल्द ही राजनीतिक दलों की बैठक भी बलाने की बात कही। साथ ही राहुल गांधी से सवाल किया कि वह इस मसले पर अपना पक्ष स्पष्ट करें। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी याद दिलाया कि लोक सभा चुनावों के दौरान किये गये अपने वायदे को पूरा करें।

उन्होंने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का चुनावी वायदा किया, लेकिन सत्ता संभालते ही उन्होंने दिल्ली को पहले से मिले अधिकार भी खत्म कर दिये। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया तो ठीक वरना 7 सीट में से कुछ नहीं मिलेगा।

केजरीवाल का पूर्ण राज्य फार्मूला

अरविंद केजरीवाल ने पूर्ण राज्य का जो फार्मूला दिया है वह है कि पूरे एनडीएमसी को केंद्र अपने अधीन रखे। इसी इलाके में केंद्र के सारी इमारतें, दूतावास आदि हैं। बाकी पूरी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाये। साथ ही जब तक दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलता, उपराज्यपाल की नियुक्ति दिल्ली सरकार की सलाह पर की जाये।

दिल्ली सदियों से गुलाम रहा है, पहले यह मुगलों के अधीन रही, फिर वायसराय और आज उपराज्पाल की अधीन गुलाम है।
– सरकारी नौकरी में दिल्ली के मतदाताओं के बच्चों का 85 फीसदी आरक्षण होना चाहिए। दिल्ली पूर्ण राज्य बन गया तो हजारों बच्चों को नौकरी मिलेगी।
– चारों तरफ चोरी, डकैती, बलात्कार दिल्ली में बढ़ रहा है। दिल्ली पुलिस एलजी और देश के गृहमंत्री को रिपोर्ट करती है। गृहमंत्री जम्मू की समस्या हल करेंगे या मंडावली की। उन्हें पता भी है कि मंडावली कहां है।
– जैसे दिल्ली सरकार ने पानी मुफ्त किया और बिजली सस्ती की, उसी तरह अगर दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार को मिल जाये तो राजधानी को वह अपराध मुक्त कर देंगे।
– दिल्ली की सरकार द्वारा केंद्र सरकार को 1 लाख 30 हजार करोड़ टैक्स दिया जाता है। बदले में केंद्र सरकार दिल्ली को 325 करोड़ देती है। क्या यूनियन टेरेटरी सिर्फ गुंडागर्दी या हमें लूटने के लिए हैं। अगर केंद्र दिल्ली सरकार को टैक्स का सिर्फ 30फीसदी हिस्सा लौटा दे तो हर झुग्गी वालों को पक्का घर मिलेगा।
– पीएम मोदी ने एंटी करप्शन ब्रांच छीन ली, अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग छीन ली।

बहरहाल आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया है कि इस बार की लोकसभा चुनाव दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मुख्य मुद्दा होगा। जिसे भुनाने की पूर्ण कोशिश करेगी आम आदमी पार्टी इसके लिए प्लाट तैयार किया जा चुका है। और धीरे धीरे इसे और गरमाने दिया जा रहा है। कांग्रेस के पास पुख्ता जवाब नहीं है तो भाजपा इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ कर नहीं पा रही है। अब देखना है कि तीनों पार्टियां इस मुददे को किस प्रकार चुनाव में भुना पाती हैं।