गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत पर सरकार का जोर-आईसीसीआई

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नईदिल्ली-

विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग तीन गुऩा वृद्धि के कारण ऊर्जा संकट आज के युग की वास्तविकता बन चुका है। विश्व में चार करोड़ 36 लाख 65 हजार टन कोयला भंडार है। गैस भंडार तो केवल 41 हजार मेगा टन है। वहीं पेट्रोल उत्पादों के बढ़ते दामों से सरकार ने गैर-परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों पर जोर देना शुरु कर दिया है। यही कारण हैं कि अकेले 2011-12 में सरकार ने सौर और पवन ऊर्जा पर 30 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की मंजूरी दी थी। आईसीसीआई के निदेशक मानवेंद्र कुमार का कहना है कि सरकार गैर-परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दे रही है। आने वाले 10-12 वर्षों में इस क्षेत्र अच्छी सफलता मिलने की उम्मीद है। अगले तीन वर्ष में ही सौर ऊर्जा उत्पादन जो कि इस समय नाममात्र का ही है, बढकर 1300 मेगावाट तक पहुंच जाएगा। केंद्र सरकार सौर ऊर्जा मिशन को 2020 तक भारत में 20,000 मेगावाट उत्पादन की क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए पिछले वर्ष 90,000 करोड़ रुपए की लागत वाले राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के मसौदा दस्तावेज को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी भी दी है। सरकार 2030 तक गीगावाट और 2030 तक 200 मेगावाट सौर बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। सौर ऊर्जा के बेहतर भविष्य को देखते हुए हाल ही में बिजली उत्पादन करने वाली सरकारी कंपनी एऩटीपीसी ने भी गैर परंपरागत ऊर्जा के उत्पादन पर 81 अरब रुपए के निवेश की घोषणा की है। सरकार पवन ऊर्जा के विकास पर भी जोर दे  रही है। अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के अऩुसार, पवन ऊर्जा का उत्पादन 2022 तक तीन गुना बढ़कर 33 हजार मेगावाट तक पहुंच जाएगा। इसमें सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में भागीदारी होगी। मंत्रालय के पास निजी क्षेत्र के अऩेक प्रस्ताव आए हैं। दरअसल बिजली पैदा करने तथा पानी उठाने का सबसे सस्ता उपाय है हवा। जापान में भूंकप तथा सूनामी के बाद परमाणु बिजली घरों के सुरक्षित होने के बारे में उत्पन्न संदेह ने ऊर्जा संकट को और बढ़ा दिया है। मानवेंद्र कुमार बताते हैं कि गुजरात में लाम्बा नामक स्थान पर एशिया का सबसे बड़ा पॉवर प्रोजेक्ट चालू किया गया है, जिसमें हवा की 50 टरवाइनें 200 किलोवाट बिजली उत्पन्न करते हैं। इनमें से किसी भी काम से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। देश में इस समय 5 पवन फार्म हैं, जिनकी क्षमता 3.63 मेगावाट है और जो 45 लाख ऊर्जा इकाइयां तैयार करती है। नब्बे के दशक में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों को पवन ऊर्जा के संभावनाशील क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया गया। वहीं कई निजी क्षेत्र की कंपनियों ने पवन ऊर्जा पर निवेश किया है।

टीवीएस ग्रुप की कंपनी ने सुंदरम फास्टनर्स विंड एनर्जी पर 50 करोड़ रुपए तक खर्च करने की योजना बनाई है। पुडुचेरी में लगने वाला यह संयंत्र अगले साल अगस्त तक तैयार हो जाएगा। सुंदरम फास्टनर्स के सीएमडी सुरेश कृष्णा का कहना है कि भारत विंड एनर्जी प्रोडक्ट्स का बड़ा उत्पादक देश बन सकता है। बहुत सी ग्लोबल कंपनियां इस बाजार में उतरी हैं। वे अपने मौजूदा संयंत्रों की टेक्नोलॉजी इंफार्मेशन प्रोवाइडर ब्लूवर्म न्यू एनर्जी फाइनेंस के शोध प्रमुख आशीष सेतिया का कहना है कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से उभर रहे विंड टर्बाइन बाजारों में से एक है। स्थापित क्षमता के मामले में दुनिया के पांचवें सबसे बड़े पवन ऊर्जा बाजार होने के बावजूद यह चीन को छोड़ दूसरे देशों के मुकाबले 15 फीसदी की तेजी से बढ़ रहा है। साल 2009 में पवन ऊर्जा प्रोड्क्टस में 1.9 अरब डॉलर का निवेश हुआ था। यह साल 2018 में चार अरब डॉलर तक जा सकता है। गोबर प्राथमिक ऊर्जा का एक मुख्य स्त्रोत है। देश में 20 करोड़ टन बायोगैस उपलब्ध है। इतनी गैस से 10.5 करोड़ टन फाइरोलाइल्ड ईंधन प्राप्त हो सकता है जो 27.5 करोड़ बैरल तेल के बराबर है। 1981-82 में देश में नेशनल प्रोजेक्ट फॉर बायोगैस डेवलपमेंट की स्थापना हुई। इसके बाद सरकार ने 1983 में उऩ्नत चूल्हों का अभियान चलाया। एक उन्नत चूल्हे ने प्रतिवर्ष 700 किलोग्राम लकड़ी शुरु किया। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की संभावना भी बढ़ी। अक्षय ऊर्जा मंत्रालय की मानें तो देश में लगभग 20 लाख गोबर गैस संयंत्र क्रियाशील हैं, जो खाना पकाने, खाद्य आपूर्ति करने तथा प्रदूषण रहित पर्यावरण बनाए रखने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। भारत के भूमध्य रेखा पर स्थित होने के कारण सौर ऊर्जा का असीम भंडार हमारे ऊपर बरस रहा है। भारत ने सूर्य से 200 मेगावाट प्रति वर्ग किलोमीटर ऊर्जा प्राप्त होती है। इसकी भौगोलिक क्षेत्र 3.28 मिलियन वर्ग किलोमीटर है। इसके अनुसार यहां 657.4 मिलियन मेगावाट ऊर्जा उपलब्ध है। पर इस क्षेत्र का सिर्फ 12.5 फीसदी अर्थात 0.413 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही सौर ऊर्जा विकास के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए यद 10 फीसदी भूमि भी उपलब्ध हो जाए, तो 8 मिलियन मेगावाट बिजली मिल सकती है। यह उपलब्ध ऊर्जा वर्तमान खपत की 26 गुना है। ऊर्जा मंत्रालय ने सौर ऊर्जा के जरिए पानी गरम करने की प्रणाली के विकास के लिए दसवीं पंचवर्षीय योजना में 10 लाख वर्गमीटर पर संग्रह क्षेत्र में योजना प्रारंभ की है। लेकिन सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करने की दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। इसी तरह से भारत नें पवन ऊर्जा से 45000 मेगावाट बिजली की क्षमता आंकी गई है। लेकिन अभी तक 5340 मेगावाट क्षमता का ही उपयोग हम कर सके हैं। देश में बायोमास के विद्युत उत्पादन की अनुमानित क्षमता लगभग 19,500 मेगावाट है, पर अभी तक 912 मेगावाट की बायोमास परियोजनाओं का ही पूरा किया जा सका है। इसके अलावा 1180 मेगावाट क्षमता की परियोजना पर काम हो रहा है। कुल मिलाकर ऊर्जा स्त्रोतों से अब तक कुल 8,095 मेगावाट बिजली ही ग्रिड को उपलब्ध कराई जा रही है। इसमें छोटी पनबिजली परियोजनाओं का उत्पादन भी शामिल है। जबकि भारत में गर्मियों में प्रचंड सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा उपलब्ध है। इसका उपयोग करके हम अनेक जिलों के तमाम कस्बों और गांवों की बिजली की समस्या हल कर सकते हैं।