जूतों के अलावा और भी कारण थे भारत के विश्व कप में नहीं खेल पाने के

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अशोक किंकर

हर चार वर्ष बाद वर्ल्ड कप फुटबॉल के आयोजन से कुछ सप्ताह पूर्व यह चर्चा शुरू हो जाती है कि काश! भारतीय टीम 1950 में ब्राजील की मेजबानी में ‘साम्बा पार्टी’ का हिस्सा बन गई होती तो शायद दुनिया में भारतीय फुटबॉल की तस्वीर अलग ही होती। वर्ल्ड कप में भारतीय टीम के खेलने का सपना देखने वाले फुटबॉल प्रेमियों को यह बड़ा अजीब सा लगता है कि 1950 में भारतीय टीम वर्ल्ड कप के फाइनल राउंड के लिए क्वालिफाई कर गई थी लेकिन फिर भी उसने इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में शिरकत नहीं की। इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं। सबसे बड़ा कारण यह बताया जाता है कि भारतीय खिलाड़ी नंगे पैर फुटबॉल खेला करते थे और फीफा का नियम था कि बिना जूते पहने कोई टीम खेल नहीं सकती। वैसे यह भी कहा जाता है कि भारत को एक वर्ष पूर्व यह सूचना दे दी गई थी कि उसे वर्ल्ड कप में खेलना है। इसे देखते हुए कुछ भारतीय खिलाड़ियों ने जूते पहन कर खेलना भी शुरू कर दिया था। शेष खिलाड़ी भी जूते पहनकर खेलने के अभ्यस्त कुछ माह में हो सकते थे, यह कोई बड़ी बात नहीं थी

फुटबॉल के लिए हर तरफ से आग लगनी चाहिए

ओलंपिक में खेलने पर रोक न लगा दी जाए

एक संदेह यह भी जताया जाता है कि यह डर था कि वर्ल्ड कप में खेलने की वजह से भारतीय खिलाड़ियों को कहीं प्रोफेशनल न मान लिया जाए और उन पर ओलंपिक में खेलने पर रोक न लगा दी जाए। इसके साथ यह तर्क भी दिया जाता है कि आॅल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन का यह डर था कि वर्ल्ड कप के मैचों में कहीं भारतीय टीम की दुर्गति न हो जाए क्योंकि उन दिनों भारत में घरेलू मैच 70 मिनट के खेले जाते थे और वर्ल्ड कप में मैच 90 मिनट के होते थे। हमारे फुटबॉल अधिकारियों को यह डर था कि कमजोर स्टेमिना वाले भारतीय खिलाड़ी 90 मिनट के मुकाबले में थकने लगेंगे और अंतिम मिनटों में उन पर मजबूत टीमें काफी गोल कर सकती थीं।
वैसे आॅल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने टीम न भेजने के पीछे जो कारण बताया था उसे आसानी से पचाया नहीं जा सकता है। यह कारण था ‘टीम के चयन में असहमति और अभ्यास के लिए पर्याप्त समय न होना।’ उस वर्ल्ड कप के क्वालीफाइंग दौर में 33 टीमों ने शिरकत की थी। भारतीय टीम को बर्मा और फिलीपींस के साथ गु्रप-10 मे ं रखा गया था लेकिन ये दोनों ही टीमे प्रतियोगिता से हट गर्इं और भारत फाइनल दौर के लिए स्वत: ही क्वालीफाई कर गया। उसे ड्रॉ में पूल -3 में स्वीडन, इटली और पराग्वे के साथा रखा गया।

भारत उससे संघर्ष न कर सके

भारत को अपना पहला मैच 25 जून को पराग्वे के खिलाफ खेलना था। उन दिनों पराग्वे ऐसी टीम नहीं थी भारत उससे संघर्ष न कर सके। इटली की टीम भी बहुत मजबूत नहीं थी। ब्राजील को भारतीय टीम पसंद थी।1948 के लंदन ओलंपिक में भारतीय टीम फ्रांस के खिलाफ बहुत संघर्ष करते हुए1-2 से हारी थी। वो भी तब जब शैलेन मन्ना और महाबीर प्रसाद गोल नहीं कर सके थे। ब्राजीली फुटबॉल प्रेमी हर उस टीम को पसंद करते रहे हैं जो छोटे-छोटे पासों, गेंद नियंत्रण, ड्रिबलिंग और शारीरिक झोल झपटों से विपक्षियों को गच्चा देन की कला में महाराथ प्राप्त हो। इसलिए ब्राजील के फुटबॉल अधिकारियों को लगता था कि भारतीय टीम उनके देश में खेलते हुए बहुत लोकप्रिय होती।
अंतिम क्षणों में वर्ल्ड कप से हटने के कारण फीफा आॅल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन से खासा नाराज हो गया था और 1954 में हुए अगले वर्ल्ड कप में भारत की एंट्री को नकार दिया गया था। भारत के साथ फीफा की नाराजगी दशकों तक चली। अंतत: 1986 में भारत को वर्ल्ड कप क्वालीफाइंग राउंड में खेलने का मौका मिला और यह सिलसिला अब भी जारी है लेकिन अभी तक भारत फाइनल राउंड में खेल नहीं सका है।