नई दिल्ली –
दक्षिण भारत के जाने माने नेता और देश की सियासत में अपनी अलग पहचान रखने वाले डीएमके चीफ एम करूणानिधी का निधन हो गया है. लंब समय से उनकी खराब चल रहा थी. एम करूणानिधी ने चेन्नई के कावेरी अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली और दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके निधन की खबर सुनते ही उनके समर्थकों के बीच शोक की लहर दौड़ गई है. आपको बता दे की डीएमके चीफ एम करूणानिधी की तबियत अचानक बिगड़ने पर उन्हें चेन्नई के कावेरी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वहीं बात अगर उनके सेहत की करे तो करूणानिधी लंबे समय से बीमार चल रहे थे.
बताय जा रहा है कि करूणनिधी यूरिन इन्फेक्शन की समस्या से पीड़ीत थे. वही बात अगर करूणानिधी के तबितय बिगड़ने की करे तो इससे बात पहले जब 28 जुलाई को उनकी तबियत बिगडने पर कावेर अस्पताल में भर्ती कराया गया था जिसके बाद से ही उनके समर्थक लगातार कावेरी अस्पताल के बाहर डटे हुए थे और उनके घर के बाहर भी लगातार उनके समर्थकों की भीड़ जमा लगी हुई थी. पिछले दिनों में उनकी तबियत बिगडने पर राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री ने फोन कर उनके स्वास्थय की जानकारी ली थी.
3 जून को 94 साल के हुए थे करूणानिधी
एम करूणानिधी का पूरा नाम मुथुवेल करुणानिधी था और उनका जन्म 1924 में थंजावुर जिसका नाम अब नागापट्टीनम है में हुआ था और हाल में ही 3 जून को उन्होंने अपने जीवन के 94 साल पूरे किए थे. बात अगर एम करूणानिधी के राजनीतिक सफर की करे तो उनके राजनीतिक शुरूआत छात्र जीवन से ही हो गई थी. हिन्दी भाषा को जब 1937 स्कूलों अनिवार्य भाषा के रूप में लागू करने का ऐलान किया गया था उसी समय इस बात का विरोध में एम करूणानिधी भी तमिल छात्रों के साथ सड़क पर उतर आए थे.
पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर की शुरूआत की थी
वहीं बात अगर एम करूणानिधी की करे तो वे तमिल भाषा के अच्छे जानकार थे . एम करूणानिधी का राजनीतिक जीवन बेहद उम्दा रह है और वे पांच बार सीएम और 13 बार विधायक रहे थे . वहीं बात अगर उनके करियर की करे तो उन्होने अपने करियर की शुरूआत करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर का शुभारंभ किया। अपनी बुद्धि और भाषण कौशल के माध्यम से वे बहुत जल्द एक राजनेता बन गए.
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वे द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और उसके समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का इस्तेमाल करके पराशक्ति नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया. पराशक्ति तमिल सिनेमा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई क्योंकि इसने द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया और इसने तमिल फिल्म जगत के दो प्रमुख अभिनेताओं शिवाजी गणेशन और एस. एस. राजेन्द्रन से दुनिया को परिचित करवाया.
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शुरू में इस फिल्म पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था लेकिन अंत में इसे 1952 में रिलीज कर दिया गया। यह बॉक्स ऑफिस पर एक बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित हुई लेकिन इसकी रिलीज विवादों से घिरी था। कुछ लोगों ने इस फिल्म का विरोध किया क्योंकि इसमें कुछ ऐसे तत्व शामिल थे जिसने ब्राह्मणवाद की आलोचना की थी इस तरह के संदेशों वाली करूणानिधि की दो अन्य फ़िल्में पनाम और थंगारथनम थीं.
इन फिल्मों में विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का उन्मूलन, आत्मसम्मान विवाह, ज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड का उन्मूलन जैसे विषय शामिल थे। जैसे-जैसे उनकी सुदृढ़ सामाजिक संदेशों वाली फ़िल्में और नाटक लोकप्रिय होते गए, वैसे-वैसे उन्हें अत्यधिक सेंसशिप का सामना करना पड़ा; 1950 के दशक में उनके दो नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया गया. एंम करूणानिधी के रूप में भारत ने आज एक दिग्गज राजनेता को खो दिया है.