सामाजिक तिरस्कार के खतरे के बीच कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ रही पिंकी

1086
• धांधी बेलारी पंचायत की आशा फेसिलिटेटर  पिंकी कुमारी 14 वर्षों से दे रही सेवा
• मुख्य धारा से कटे हुए गांवों में लोगों को पहुंचा रहीं स्वास्थ्य सेवा
भागलपुर, 17  जुलाई
कोरोना का संक्रमण दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. राज्य में फिर से  लॉकडाउन लगाना पड़ा है. सभी लोग घरों में कैद हैं. ऐसे में घर-घर जाकर लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक करना आसान काम नहीं है. साथ में संक्रमण के खतरे के बीच लोगों की स्क्रीनिंग करना किसी चुनौती से कम नहीं है. समाज में वैसे भी लोग हैं जो इस तरह के काम करने वालों को  तिरस्कार कर रहे हैं. लेकिन इस चुनौती को स्वीकर कर घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करने में सुल्तानगंज प्रखंड की घांधी बेलारी पंचायत की आशा फैसिलिटेटर पिंकी कुमारी दिन रात जुटी है. वह गांव के लोगों को कोरोना से बचाव के तरीके भी बता रही हैं. साथ ही संदिग्धों की पहचान कर उसका सैंपलिंग भी करवा रही हैं.
पिंकी कुमारी कहती हैं, वह अभी तक सैकड़ों लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग कर चुकी है. वह जिस इलाके में काम करती है, वह मुख्य धारा से कटा हुआ है. वहां पर स्वास्थ्य सेवा पहुंचाना आसान नहीं है, लेकिन उन्हें इस काम को करने से संतुष्टि मिल रही है. साथ ही वहां के लोग भी बहुत ज्यादा जागरूक नहीं हैं. इसलिए उन्हें सफाई के प्रति जागरूक करना व मास्क पहनने की सलाह देना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन यह जरूरी भी है. गांव के लोगों को स्वास्थ्य सेवा पहुंचाकर संतुष्टि मिलती है.
14 सालों से कर रहीं सेवा:
पिंकी कुमारी 2006 से ही बतौर आशा के तौर पर काम कर रही हैं. इन 14 सालों में इन्होंने 500 से अधिक महिलाओं का सफलतापूर्वक प्रसव कराया है. इतने लंबे समय तक सेवा देने से वह गांव के लोगों में पिंकी दीदी के तौर पर काफी लोकप्रिय हैं. अपने क्षेत्र के किसी भी गांव में जब भी ये जाती हैं तो लोग समझ जाते हैं कि स्वास्थ्य के प्रति ये कुछ समझाने आई हैं. साथ ही बच्चों और महिलाओं के टीकाकरण में भी बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं.
पति का भी मिल रहा सहयोग:
पिंकी कुमारी के पति स्वास्थ सेवा से जुड़े हैं. वह पल्स पोलियो अभियान में अपना योगदान देते हैं. दो बच्चे हैं. इसके बावजूद वह अपने काम को पूरी ईमानदारी से करती हैं. वह कहती हैं कि वह जब काम पर रहती हूं तो पति घर में बच्चे को संभालते हैं. इससे मैं अपना काम बेफिक्र होकर कर पाती हूं. अगर परिवार का सहयोग नहीं मिलता तो मैं अपना काम उतनी शिद्दत से नहीं कर पाती, जितना की आज कर रही हूं.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने की थी ललक:
पिंकी कुमारी कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि वह सिर्फ आर्थिक जरूरत के लिए इस काम को कर रही हूं. वह बचपन से ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना चाहती थी. यही कारण है कि जब 2005 में ट्रेनिंग की शुरुआत हुई तो वह उसमें शामिल हो गई. काम करने के प्रति ललक उन्हें जिम्मेदार बनाती है. यही कारण है कि वह अपना काम पूरी ईमानदारी से कर पाती हैं.