दिल्ली की सोनिका चावला ने द इंटरनेशनल ग्लैमर प्रोजेक्ट के अंतिम 60 में जगह बनाई।

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दिल्ली :
जीवन में कई कठिनाइयों से गुजरने के बाद सफलता की ऊंचाइयों को प्राप्त करना हर व्यक्ति के लिए संभव नहीं होता। हर व्यक्ति जीवन में चुनौतियों को जीतने के लिए साहस नहीं रखता है। पर कुछ लोग ऐसा कर जाते हैं, उन्ही में से दिल्ली की रहने वाली “सोनिका चावला” इसका एक आदर्श उदाहरण है।

सोनिका की बचपन से ही इक्छा थी कि वो ग्लैमर की दुनिया में अपना नाम स्थापित करें। जीवन के उतार चढ़ाव के बीच उन्हें ये मौका मिला जब सोशल मीडिया पर द इंटरनेशनल ग्लैमर प्रोजेक्ट के विज्ञापन को देखा, इससे सोनिका को अपने सपनों को सच करने का मौका मिला। सोनिका ने फिर मुड़ कर नहीं देखा और वह लगातार कड़ी मेहनत करती रही जिसका परिणाम यह हुआ की सोनिका को द इंटरनेशनल ग्लैमर प्रोजेक्ट के अंतिम 60 प्रतियोगिओं में जगह मिली।

सोनिका ने अपने सौंदर्य प्रतियोगिता में शिक्षा को एक माध्यम बनाया। शिक्षा जीवन का आधार है और लड़कियों की शिक्षा से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। वह इस संदेश को पूरे देश में फैलाना चाहती है। सोनिका पूरे भारत में बाल शिक्षा का प्रसार करना चाहती है ताकि कोई भी लड़की शिक्षा के अधिकार से वंचित न रह सके। सोनिका का मानना है कि समाज का विकास तभी संभव है जब महिला शिक्षित होंगी।

अपने जीवन के बारे में बताने पर कहा कि कम उम्र में ही अपने पिता को खोने के बाद, उनकी माँ ने उन्हें और उनके भाई-बहनों का मुश्किल समय में लालन-पालन किया। कठिन परिस्थिति के बावजूद माँ ने सोनिका की पढ़ाई से समझौता नहीं किया और उन्हें अच्छी शिक्षा दीक्षा दी। सोनिका ने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया और फिर एनआईआईटी से कंप्यूटर में दो साल का कोर्स पूरा किया। सोनिका अपनी पढ़ाई और खेल दोनों में सर्वश्रेष्ठ साबित हुई। उन्होंने टाईकण्डो महासंघ में येल्लो बेल्ट भी हासिल की।

वह एक दोस्त के माध्यम से अपने पति विशाल से मिली और वह विशाल की महिलाओं के प्रति सम्मान वाली सोच से प्रभावित थी और दोनों ने आखिरकार अपने माता-पिता की सहमति से शादी करने का फैसला किया।

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने उसकी जिंदगी बदल दी। सोनिका के गर्भावस्था के 9 महीनों में उसकी बेटी की मृत्यु हो गई। इससे वह पूरी तरह से टूट गयी थी। उसने उन तीन महीनों में बहुत कुछ झेला, वह अपने परिवार से घिरी होने के बावजूद अकेली महसूस करती थी। अपने बुरे समय में, उसे एहसास हुआ कि वह कौन है, वास्तव में यह वो दौर था जब समझ पाई की वह अपने जीवन में क्या चाहती है, और फिर अपने सपनों को पूरा करने का फैसला किया। इन्ही सब घटनाओ ने उसे अपनी शर्तों पर एक नया जीवन जीने की शक्ति और साहस दिया है।

आगे बताया की अपने भाई को खोना भी उसके जीवन का वह क्षण था, जब वह टूट गई, लेकिन सोनिका जैसी मजबूत महिला ने कभी भी जीवन को छोड़ना नहीं सीखा। उसने हमेशा अपनी कठिनाइयों के माध्यम से और अधिक मजबूत होना सीखा और हमेशा अपने जीवन में आगे बढ़ती रही।

सोनिका की माँ एक साहसी महिला हैं और उन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी है। सोनिका का कहना है कि उनके पति विशाल और उनकी माँ हमेशा उनका समर्थन करते हैं, और उनकी सफलता के पीछे उनका बहुत बड़ा हाथ है। सोनिका अपने पिता को अपना आदर्श मानती है, भले ही वह उसके साथ बहुत कम समय के लिए रहे हों, लेकिन पिता का साथ होना उनको आज भी एहसास दिलाता है।