नई दिल्ली-
दिल्ली के जवाहर लाल विश्वविद्यालय (जेएनयू)के कन्वेंशन सेंटर में इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद की अधिकृत आत्मकथा ‘सिंग, डांस एंड प्रे: द इंस्पिरेशनल स्टोरी ऑफ श्रील प्रभुपाद’ नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। यह पुस्तक डॉ. हिंडोल सेनगुप्ता द्वारा लिखी गई है और पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया द्वारा प्रकाशित की गई है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री चंचलपति दास, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, इस्कॉन बैंगलोर, उपाध्यक्ष, अक्षय पात्र फाउंडेशन ने की।
दिल्ली के जवाहर लाल विश्वविद्यालय के कंवेशन सेंटर में इस्कॉन के संस्थापक संत श्रील प्रभुपाद की जीवनी पर आधारित पुस्तक ‘सिंग, डांस एंड प्रे’ के लोकार्पण में छात्रों का अच्छा खासा जमावड़ा दिखा। डॉ. हिंडोल सेनगुप्ता द्वारा लिखित इस पुस्तक का लोकार्पण जेएनयू के वाइस चांसलर प्रो. शांतिश्री धूलिपुड़ी के कर कमलों से किया गया। इस्कॉन अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभक्ति आंदोलन की वाहक संस्था है। इसके संस्थापक संत श्रील प्रभुपाद ने विश्व के विभिन्न देशों सहित भारत में भव्य मंदिरों की श्रृंखला तैयार की जिसे इस्कॉन के वर्तमान संचालक आगे बढ़ा रहे हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। श्रील प्रभुपाद के जीवन से संबंधित एक वृत चित्र का भी प्रदर्शन किया गया। उनकी जीवनी प्राचीन भारत से लेकर 20वीं सदी के अमेरिका तक की कालातीत आध्यात्मिक संस्कृति को दर्शाती है। उस जमाने में तमाम कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने बीसवीं शताब्दी के 60 और 70 के दशक में जिस आध्यात्मिक-सांस्कृतिक जागरण की शुरूआत की उसका प्रभाव यूरोप और अमेरिका में गहराता ही जा रहा है। उनकी जीवनी से संबंधित इस पुस्तक को दुनिया भर के विद्वानों, विचारकों और नेताओं से सर्वसम्मति से प्रशंसा मिली है।
वे श्रील भक्तिविनोद ठाकुर और श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी महाराज जैसे महान आचार्यों के गौड़ीय-वैष्णव सम्प्रदाय में आते हैं। उन्होंने पश्चिम में भगवान कृष्ण और श्री चैतन्य महाप्रभु के संदेश को फैलाने के लिए कलकत्ता से न्यूयॉर्क शहर तक एक स्टीमशिप पर एक कठिन यात्रा की। बारह छोटे वर्षों में, श्रील प्रभुपाद ने सौ से अधिक कृष्ण मंदिरों, एक प्रकाशन गृह, शैक्षणिक संस्थानों और कृषि समुदायों का एक अंतर्राष्ट्रीय संघ स्थापित किया। मानव जाति के लिए उनके योगदान के लिए प्रसिद्ध नेताओं द्वारा उनकी अत्यधिक सराहना और सम्मान किया गया है। यह श्रील प्रभुपाद की एक प्रेरणाजनक कहानी है जो पश्चिमी प्रतिसंस्कृति के एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे और उन्होंने 20वीं सदी के मध्य में मुख्यधारा के अमेरिकियों के सामने वैदिक भारत की प्राचीन शिक्षाओं को रखा जिसने लेखक-कवि एलन गिन्सबर्ग से लेकर बीटल्स के प्रमुख गिटारवादक जॉर्ज हैरिसन तक को आकर्षित किया और उनके 100 से ज्यादा देशों में लाखों अनुयायी हैं।
इस अवसर पर बोलते हुए इस अवसर पर बोलते हुए, वाइस चांसलर प्रो. शांतिश्री धूलिपुड़ी ने कहा कि श्रील प्रभुपाद ने हमें 21वीं सदी में आध्यात्मिकता की प्रासंगिकता सिखाई है। भारत को एक आध्यात्मिक लोकतंत्र के रूप में जाना जाता है। यह पुस्तक भारत के उस आंदोलन में एक महान तरीके से योगदान देगी। हम एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय हैं। हम एक ऐसी संस्था हैं जो इस्कॉन के कई सिद्धांतों में विश्वास करती है – समानता के साथ उत्कृष्टता, समानता के साथ सहानुभूति, और अंतज्र्ञान के साथ अखंडता। यह पुस्तक बहुत ही स्पष्ट रूप से बड़ी स्पष्टता के साथ लिखी गई है, जिससे लोगों को समझने में आसानी होती है। यह पुस्तक बताती है कि कैसे श्रील प्रभुपाद ने 69 वर्ष की आयु में अमेरिका की यात्रा की, यह संदेश देते हुए कि कुछ भी नया शुरू करने में कभी देर नहीं होती। उन्होंने भगवद-गीता के महत्व के बारे में बताया।
श्री चंचलपति दास, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, इस्कॉन बैंगलोर, उपाध्यक्ष, अक्षय पात्र फाउंडेशन ने कहा कि मैं वाइस चांसलर को धन्यवाद देता हूं। इस प्रतिष्ठित संस्थान में आज श्रील प्रभुपाद की जीवनी का विमोचन करने के लिए। यह आयोजन हमारे देश के युवाओं तक श्रील प्रभुपाद के संदेश को पहुँचाने में मदद करेगा।
डॉ. ए.एस. हिंडोल सेनगुप्ता ने इस पुस्तक में श्रील प्रभुपाद के जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को शानदार ढंग से अंकित किया है। यह पुस्तक युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत होगा और उन्हें जीवन की चुनौतियों से पार पाने के लिए प्रेरित करेगा।