खुशी देवी ने लोगों के सहयोग से टीबी पर पाई विजय

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24 साल की उम्र में हो गई थी पीड़ित, अब हो गई स्वस्थ
नाथनगर प्रखंड के चंपानगर की रहने वाली है खुशी देवी

भागलपुर, 23 मार्च
नाथनगर प्रखंड के चंपानगर की रहने वाली खुशी देवी (25) को 1 साल पहले खांसी के दौरान बलगम में खून आने लगा था. यह सिलसिला 2 हफ्ते से भी अधिक समय तक चला. समाज के लोग इनसे दूरी नहीं बना ले, इस वजह से खुशी देवी यह बात लोगों को बता भी नहीं रही थी लेकिन इनके साथ हुआ ठीक उल्टा. जब समाज के लोगों को इस बात की जानकारी हुई तो खुशी देवी से दूरी बनाने के बजाय सहयोग करने लगे. पड़ोस के शिबू साव ने गांव की आशा कार्यकर्ता को इस बात की जानकारी दी. आशा कार्यकर्ता जब जांच के लिए नाथनगर रेफरल अस्पताल ले गई तो वहां पर टीबी होने की पुष्टि हुई. इसके बाद खुशी देवी को 6 महीने की दवा दी गई. दवा का डोज पूरा करने के बाद खुशी देवी ने दोबारा जांच कराई, जिसमें वह निगेटिव आई अब वह पूरी तरह से स्वस्थ है.

स्वास्थ्य विभाग का अभियान ला रहा रंग: खुशी देवी के मामले से पता चलता है कि स्वास्थ्य विभाग का अभियान अब रंग ला रहा है. टीबी जैसी बीमारी को लेकर लोगों के मन में जो संदेह था, वह खत्म हो रहा है और लोग सहयोग करने के लिए भी सामने आ रहे हैं. खुशी देवी बताती हैं जब 2 हफ्ते तक मुझे लगातार खांसी हुई और बलगम में खून आने लगा तो मुझे आशंका हो गई थी, लेकिन मैं यह बात किसी को बताने से डर रही थी.

हर कोई नहीं करता भेदभाव: खुशी देवी कहती हैं कि डर इसलिए रही थी कि कहीं लोग मुझसे भेदभाव नहीं करने लगे, लेकिन जब यह सिलसिला लंबा चला तो मैंने अपने पति दिलीप साव को इस बात की जानकारी दी. वह भी हतप्रभ रह गए और कुछ नहीं बोले, लेकिन यह बात धीरे- धीरे पड़ोस के लोगों को पता चल गई. पड़ोस के शिबू साव ने जब आशा कार्यकर्ता को इसकी जानकारी दी तब मेरा इलाज शुरू हुआ. मैं यह कहना चाहती हूं कि हर कोई भेदभाव ही नहीं करता है, बल्कि सहयोग भी करते हैं.

पति भी बताने से कर रहे थे परहेज: पति दिलीप साव कहते हैं कि खुशी ने मुझे जब यह बात बताई तो मैं डर गया था. 3-3 छोटे बच्चे हैं मुझे. मैं थोड़ा आशंकित हो गया था, लेकिन पड़ोस के लोगों को जब यह जानकारी मिली तो उनलोगों ने दूरी बनाने की बजाय सहयोग किया और इसका परिणाम सामने है.

जागरूकता का दिखा असर: आशा कार्यकर्ता को जानकारी देने वाले शिबू कहते हैं कि हमलोग पिछले काफी समय से यह देखते, सुनते और पढ़ते आ रहे हैं कि टीबी सिर्फ छूआछूत से ही नहीं होता है और इसका इलाज भी संभव है. इसलिए मैंने सोचा कि अगर खुशी का इलाज हो जाएगा तो इससे समाज में एक बेहतर संदेश जाएगा. इस वजह से मैंने आशा कार्यकर्ता को इसकी जानकारी दी. इससे समाज में न सिर्फ बेहतर संदेश गया, बल्कि अब दूसरे लोग भी टीबी के मरीज से छूआछूत जैसा अपराध नहीं करेंगे.

समाज में सहयोग की भावना बढ़ी: वहीं पड़ोसी भोलू साव कहते हैं कि अब वह समय चला गया जब लोग इन सब बातों से डरा करते थे. अब समाज में सहयोग की भावना बढ़ी है. हर कोई एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ रहते हैं और जब मुझे पता चला तो मैं भी खुशी के घर जाया करता था. दिलासा देता था और बताता था कि यह बीमारी जल्द ठीक हो जाएगी. आज वह स्वस्थ है. उसे तो खुशी है, ही, हमलोग भी खुश हैं.