इतिहास का सबसे ऐतिहासिक हल्दी घाटी का युद्ध महाराणा प्रताप मुगलों की विशाल सेना से हार गए थे लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. अकबर के लिए कुछ खास साबित नहीं हुई जीत.
नई दिल्ली: राजस्थान के वीर सपूत, महान योद्धा और अदभुत शौर्य व साहस के प्रतीक महाराणा प्रताप की आज (9 मई 2020) को 480वीं जयंती है. महाराणा प्रताप ने मुगलों से कई लड़ाइयां लड़ी, लेकिन अकबर के साथ हल्दी घाटी का युद्ध उनका सबसे ऐतिहासिक रहा है. प्रताप की हर शौर्य गाथा में उनके चेतक घोड़े का भी जिक्र जरूर होता है. इतिहास की कई लड़ाइयां जीतने में हवा से बात करने वाले अद्भुत, बहादुर चेतक की अहम भूमिका रही है.
महाराणा प्रताप का जन्म महाराजा उदयसिंह के घर 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग (पाली) में हुआ था. हिन्दू तिथि के हिसाब से साल 1540 में 9 मई को ज्येष्ठ शुक्ल की तृतीया तिथि थी. इस हिसाब से महाराणा प्रताप की जयंती इस साल 25 मई को भी मनाई जाएगी.
महाराणा प्रताप और अकबर का ऐतिहासिक युद्ध
महाराणा प्रताप के इतिहास के पन्नों में सबसे ज्यादा चर्चा हल्दी घाटी के युद्ध की होती है. प्रताप और अकबर के बीच दुश्मनी भारतीय इतिहास में दो बड़े शासकों के बीच युद्ध की गाथा है. 1576 में हुए इस युद्ध में प्रताप ने 20 हजार सैनिकों के साथ मुगल के 80 हजार सैनिकों का सामना किया था. युद्ध में प्रताप के चेतक ने भी अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया था.
चेतक इतना फुर्तीला था कि उसका पांव हाथी के सिर तक पहुंच जाता था. युद्ध में चेतक ने सेनापति मानसिंह के हाथी के सिर पर पांव रख दिया था, जिसके बाद महाराणा प्रताप ने दुश्मन पर प्रहार किया. हालांकि उसी समय चेतक घायल हो गया था, लेकिन फिर भी दुश्मनों के बीच से महाराणा प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था. इसी दौरान चेतक एक बरसाती नाले को ऐसे लांघा जैसे वह कोई घोड़ा नहीं बल्कि बाज हो. मुगल सेना भी इस नाले को पार नहीं कर पाई थी.
हालांकि इस युद्ध में मुगल सेना और जयपुर के राजा मानसिंह की जीत हुई थी. हल्दी घाटी की युद्ध में जीतकर भी अकबर की हार मानी जाती है. भले ही ज्यादातर राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए थे लेकिन महाराणा प्रताप और उनके सहयोगी मुगलों के हाथ नहीं आए. प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और पूरी जिंदगी मुगल साम्राज्य के खिलाफ लड़ते रहे.