“सामाजिक दूरी और बाक़ी चीज़ें ठीक हैं, लेकिन हमें अपना धंधा करने की इजाज़त नहीं दी जा रही है. हम पैसे नहीं कमा सकते और ऐसे में हम अपने बच्चों को खाना भी नहीं खिला पा रहे हैं.”
नासिक की रेखा
रेखा एक सेक्स-वर्कर हैं और वह एक स्वयंसेवी संस्था की एक्टिविस्ट भी हैं जो कि सेक्स-वर्कर्स के लिए काम करती है.
कोरोना संक्रमण का ख़तरा बढ़ने के साथ ही पूरे विश्व में रेड-लाइट इलाक़ों में सेक्स-वर्कर्स ने अपना धंधा बंद कर दिया है. सेक्स-वर्कर्स ने लॉकडाउन का आदेश आने से पहले ही ख़ुद ही यह फ़ैसला लिया है और वे अपने यहां कस्टमर्स को आने नहीं दे रहे हैं.
कर्फ़्यू के ऐलान से तीन दिन पहले ही हमने अपना कामकाज बंद कर दिया था. हमने सोचा कि दूसरों को यह बीमारी नहीं होनी चाहिए और हम ख़ुद भी दूसरों के ज़रिए संक्रमित नहीं होना चाहते थे. वैसे तो हम हर रोज़ ही डर के साये में जीते हैं. हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं और हमें भी आने वाले दिनों में अपनी आजीविका के बारे में सोचना होगा. लेकिन, मैं यह कह सकती हूं कि अगर हम इससे संक्रमित नहीं होंगे तो आप भी इससे संक्रमित नहीं होंगे.”
सेक्स वर्कर्स भी समाज के हाशिए पर मौजूद तबका है. इनके लिए रोज़ाना के लिए खाने-पीने का इंतज़ाम करना मुश्किल भरा हो गया है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक अनुमान के मुताबिक, देश में क़रीब 30 लाख सेक्स वर्कर्स हैं.
चूंकि, अब कारोबार बंद हो गया है ऐसे में सेक्स-वर्कर्स के पास पैसे की कमी हो गई है. छोटे दुकानदार, एजेंट्स और ठेले वालों की भी कमाई बंद हो गई है क्योंकि इनका कामकाज सेक्स-वर्कर्स के धंधे पर टिका होता है.
रानी खाला भिवंडी की एक सेक्स-वर्कर हैं. वो कहती हैं, “हमारे पास एक रुपया भी नहीं बचा है. हम अपने रोज़ाना की रोज़ी-रोटी को लेकर चिंतित हैं. हम फ़िलहाल स्वयंसेवी संस्थाओं पर ही टिके हुए हैं.”
इस रेड-लाइट एरिया में कई एचआईवी पॉज़िटिव और टीबी मरीज़ हैं. ऐसे लोगों के लिए क्लीनिक जाना मुश्किल हो गया है. रानी कहती हैं, “हम उन्हें रेगुलर मेडिसिन देते हैं. अगर कोई अधिक बीमार हो जाता है तो स्वयंसेवी संस्थाओं की एंबुलेंस मदद के लिए आती है.”