– टीबी है एक संक्रामक रोग लेकिन मरीजों की कतई न करें उपेक्षा
– संक्रमित होने की स्थिति में सही समय पर कराएं सही इलाज
– सभी सरकारी अस्पतालों पर निःशुल्क उपलब्ध है टीबी जांच और समुचित इलाज की सुविधा
लखीसराय-
किसी से मिलने और हाथ मिलाने से नहीं फैलता है टीबी का संक्रमण| इसलिये टीबी मरीजों की उपेक्षा कतई नहीं करें । उससे अपनत्व की भावना रखते हुए उसे टीबी की सही जांच और सही जगह पर इलाज कराने के लिए प्रेरित करें। उक्त जानकारी लखीसराय के संचारी रोग के नोडल अधिकारी डॉ श्रीनिवास शर्मा ने दी । उन्होंने बताया कि किसी भी संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए सतर्क रहना जरूरी है। क्योंकि कोरोना काल के बाद से विशेषकर श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों से बचाव करना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके साथ भीड़भाड़ वाली जगहों पर एहतियात व सुरक्षा के पैमानों को व्यवहार में लाया जाना अभी भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है । ऐसी ही श्वसन संबंधित संक्रामक बीमारियों में टीबी भी एक महत्वपूर्ण बीमारी है जो फेफड़ों को प्रभावित करता । डॉ. शर्मा ने सेंटर फॉर डिजिज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) के हवाले से बताया कि संक्रमित व्यक्ति के खांसने व बोलने से निकली बूंद में मौजूद टीबी बैक्टीरिया हवा के माध्यम से स्वस्थ्य व्यक्ति तक पहुंचती है।
मिथ्याओं से बचें ताकि उपेक्षित नहीं हो संक्रमित :
डॉ. श्रीनिवास शर्मा ने बताया कि सीडीसी के मुताबिक टीबी संक्रमण को ले कुछ मिथ्याएं भी हैं । इन मिथ्याओं की वजह से लोग टीबी ग्रसित लोगों की उपेक्षा करने लगते हैं। टीबी ग्रसित लोगों के प्रति इस तरह से उपेक्षा किया जाना उसके इलाज में भी असुविधा ही पैदा करती है। आमलोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे टीबी संक्रमण होने के सही कारणों की जानकारी लें। सीडीसी के अनुसार यह रोग हाथ मिलाने, किसी को खानपान की सामग्री देने या लेने, बिस्तर पबैठने व एक ही शौचालय के इस्तेमाल करने से बिल्कुल भी नहीं फैलता है।
फेफड़ों व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है टीबी :
उन्होंने बताया कि जब एक व्यक्ति सांस लेता है तो बैक्टीरिया फेफड़ों में जाकर बैठ जाती और वहीं बढ़ने लगती है। इस तरह से वो रक्त की मदद से शरीर के दूसरे अंगों यथा किडनी, स्पाइन व ब्रेन तक पहुंच जाती है । आमतौर पर ये टीबी फैलने वाले नहीं होते हैं | वहीं फेफड़ों व गले का टीबी संक्रामक होता है जो दूसरों को भी संक्रमित कर देता है।
कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वालों को संक्रमण की संभावना अधिक :
सीडीसी के मुताबिक ट्रयूबरक्लोसिस दो प्रकार के होते हैं। इनमें एक लेंटेंट टीबी होता है जिसमें टीबी की बैक्टीरिया शरीर में मौजूद होती हैं लेकिन उनमें लक्षण स्पष्ट रूप से नहीं दिखते हैं| लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर इसका असर उभर कर देखने को मिल सकता है। वहीं कुछ स्पष्ट दिखने वाले लक्षणों से टीबी रोगियों का पता चल पाता है।
ये लक्षण दिखें तो करायें टीबी जांच :
तीन सप्ताह या इससे अधिक समय से खांसी रहना, छाती में दर्द, कफ में खून आना
कमजोरी व थका हुआ महसूस करना।
वजन का तेजी से कम होना,
भूख नहीं लगना, ठंड लगना, बुखार का रहना,
रात को पसीना आना इत्यादि।