बच्चों के संतुलित पोषण से बौनेपन में आयेगी कमी

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-छह माह के बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार है जरूरी

लखीसराय / 29 जून –

बेहतर मातृ एवं शिशु पोषण हमेशा से ही एक चुनौती रही है। मातृ एवं शिशुओं को कुपोषण के दंश से बचाने के लिए पोषण पर ध्यान देना उतना ही जरूरी है जितना एक शरीर के लिए शुद्ध हवा।
सिविल सर्जन डॉ बीपी सिन्हा बताते हैं सही और संतुलित पोषण न मिलने से बच्चे बौनेपन के शिकार हो जाते हैं। इसलिए प्रसव के एक घन्टे के भीतर ही शिशु को स्तनपान जरूर कराना चाहिए। इससे बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। जबकि शिशु जन्म के 6 महीने तक बच्चे को केवल स्तनपान ही कराना चाहिए। इस दौरान ऊपर से पानी भी शिशु को नहीं देना चाहिए।
छह माह के बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार है जरूरी : डॉ. सिन्हा ने बताया कि 6 माह के बाद बच्चों में शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से शुरू हो जाता है। इसलिए 6 माह के बाद सिर्फ स्तनपान से जरूरी पोषक तत्व बच्चे को नहीं मिल पाता है। इसलिए छ्ह माह के उपरान्त अर्धठोस आहiर जैसे खिचड़ी, गाढ़ा दलिया, पका हुआ केला एवं मूंग का दाल दिन में तीन से चार बार जरूर देना चाहिए। दो साल तक अनुपूरक आहार के साथ माँ का दूध भी पिलाते रहना चाहिए। ताकि शिशु का पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास हो पाए। उन्होंने बताया कि उम्र के हिसाब से ऊँचाई में वांछित बढ़ोतरी नहीं होने से शिशु बौनेपन का शिकार हो जाता है। इसे रोकने के लिए शिशु को स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार जरूर देना चाहिए।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सूर्यगढ़ा के प्रभारी डॉ वाई .के दिवाकर ने बताया पहले 1000 दिन नवजात के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। जो कि महिला के गर्भधारण करने से प्रारम्भ हो जाते हैं। आरंभिक अवस्था में उचित पोषण नहीं मिलने से बच्चों का शारीरिक एवं बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो सकता है। जिसकी भरपाई बाद में नहीं हो पाती है। शिशु जन्म के बाद पहले वर्ष का पोषण बच्चों के मस्तिष्क और शरीर के स्वस्थ विकास और प्रतिरोधकता बढ़ाने में बुनियादी भूमिका निभाता है। शुरुआत के 1000 दिनों में बेहतर पोषण सुनश्चित होने से मोटापा और जटिल रोगों से भी बचा जा सकता है।
डॉ दिवाकर ने बताया गर्भावस्था के दौरान महिला को प्रतिदिन के भोजन के साथ आयरन और फॉलिक एसिड एवं कैल्सियम की गोली लेना भी जरूरी है। एक गर्भवती महिला को अधिक से अधिक आहार सेवन में विविधता लानी चहिए। गर्भावस्था में बेहतर पोषण शिशु को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान आयरन और फॉलिक एसिड के सेवन से महिला एनीमिया से सुरक्षित रहती एवं इससे प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव से होने वाली जटिलताओं से भी बचा जा सकता है। वहीँ कैल्सियम का सेवन भी गर्भवती महिलाओं के लिए काफ़ी जरूरी है। इससे गर्भस्थ शिशु के हड्डी का विकास पूर्ण रूप से हो पाता एवं जन्म के बाद हड्डी संबंधित रोगों से शिशु का बचाव भी होता है।